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________________ 257 चतुर्थः सर्गः (युग्मम् ) अथ 'कले ! कलय श्वसिति स्फुटं चलति पक्ष्म चले ! परिभावय | अधरकम्पनमुन्नय मेनके ! किमपि जल्पति कल्पलते.! शृणु // 11 // रचय चारुमते ! स्तनयोवृतिं गणय केशिनि ! कैश्यमसंयतम् / . अवगृहाण तरङ्गिणि ! नेत्रयोर्जलझराविति शुअविरे गिरः // 114 // अथ भैग्याः कलादयः सप्त सण्यस्तासां तदशापरीक्षाग्यप्राणां मिया कलकलं श्लोकहयेनाह-अथेति / अथानन्तरम्, इति गिरः शुश्रविर इति सम्बन्धः / ता एवाह-हे कले ! स्फुटं व्यक्तं, श्वसिति प्राणिति, कलय आकलय / हे चले ! पक्षमा नेत्रलोम, चलति चन्मिपतीत्यर्थः। परिभावय परामश / हे मेनके ! अपरकम्प. नमोष्ठचलनमुन्नय तर्कय / हे कल्पलते ! किमपि जल्पति, शृणु // 113 // रचयेति / हे चारुमते / स्तनयोवृतिमावरणं रचय / हे केशिनि ! असंयतं वित्रस्तं कैश्यं केशसमूह, 'केशाश्वाभ्यां या छावन्यतरस्याम' इति यन्प्रत्ययः। गणय चिन्तय / बधानेत्यर्थः। हे तरङ्गिणि! नेत्रयोर्जलझरावप्रवाही, अवगृहाण बधान / इति गिरः शुश्रुविरे श्रुताः // 114 // इसके (कुछ होशमें आने के बाद 'हे कला ! देखो साफ 2 श्वास ले रही है, हे चला ! इसके पलक चल रहे हैं, यह तुम विचार करो; हे मेनका! इसका ओष्ठ हिल रहा है, यह तुम अनुमान करो; हे कल्पलता ! कुछ ( मस्पष्ट तथा धीरेसे ) कह रही है, तुम मुनो; हे चारुमती ! इसके स्तनोंको ढंक दो; हे केशिनी ! खुले हुए (इसके) केश-समूहको बांध दो; हे तरङ्गिणी ! नेत्रोंमें निकले हुए मासूको पोंछ दो'; इस प्रकार (सखियोंका परस्पर में) कहना सुनाई दिया // 113-114 / / कलकलः स तदालिजनाननादुदलसद्विपुलस्त्वरितेरितः / यमधिगम्य सुतालयमेतवान् द्रुततरः स विदर्भपुरन्दरः / / 115 // कलकल इति / तदा तस्मिन् सखीजनब्याकुलकाले, आलिजनाननात सखीमु. खारवरितेरितैः सम्भ्रमोक्तिभिः, विपुलो महान् , सः कलकला उदलसदुस्थितः / यं कलकलमधिगम्याकण्य, स विदर्भपुरन्दरः भीमभूपतिः द्रुततरोऽतित्वरितः, सुताल. यमेतवान् कन्यान्तःपुरं प्राप्तवान् // 115 // इस प्रकार मापसमें मरदी 2 कानेसे सखी-समुदायके मुखसे निकला हुआ वह महान् कोलाहल अधिक बढ़ गया (अथवा-धावकों अर्थात् दौड़कर दमयन्ती-मूछोको खबर पहुँचानेवालों के कहनेसे सखी-समुदाय....... ) जिसे सुनकर विदर्भनरेश (राजा भीम ) 1. '-मीयिवान् धृतदरः' इति पाठान्तरम् /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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