SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थः सर्गः 247 अधुना वितनोरनङ्गस्य तव पिकस्वरः कोकिलालाप एव, सः दग्धः पनमः, पास. यापूरणः शरोऽभूत् / ध्र वम् / अत एव, 'पिका कूजति परम मित्यादौ पिकस्वरे पश्चमसंज्ञाप्रवृत्तिश्चेति भावः। 'पनमो शगभेदे स्यात् पशानामपि पूरण' इति विश्वः। शरकार्यकारित्वात् पिकस्वरस्य शरवोस्प्रेक्षा // 94 // __ हे स्मर ! शिवजीके प्रति तुमने जिस बाणको (मारनेके लिये ) ग्रहण किया, वह तुम्हारे साथमें ही 'धक' से (पाठान्तरमें-शीघ्र ) भस्म हो गया। शरीरहीन तुम्हारे वही पांचवां बाण इस समय निश्चय ही कोयलका शम्द हो गया है। [ कोयलका शब्द भी विरही लोगों के लिये सन्तापकारक होता है। कोयल पञ्चम स्वरसे बोलता है यह सर्वसम्मत सिद्धान्त है ] // 14 // स्मर ! समं दुरितैरफलीकृतो भगवतोऽपि भवदहनश्रमः / सुरहिताय हुतात्मतनुः पुनर्ननु जनुर्दिवि तत्क्षणमापिथ // 15 // स्मरेति / हे स्मर ! भगवतो हरस्थापि, दुरितैः समं भवत्पापैः सह भगवष्टिः पातस्य पापहरस्वादिति भावः / भवदहनश्रमोऽफलीकृतो निष्फलीकृतः, सुरहिताय हुतात्मतनुहरकोपानले त्यत्तस्वदेहः सन् , तत्क्षणं तस्मिन्नेव सणे अत्यन्तसंयोगे द्वितीया / विवि द्युलोके, पुनर्जनुः पुनस्पत्तिमापिथ नयु प्राप्नोषि खलु / सुरप्रार्षि थितात्तस्मादेवेति शेषः / तचास्मस्पापफलमिति भावः // 15 // हे स्मर ! इमारे पापोंने भगवान् शरजीके तुम्हें जलाने के परिममको मी निष्फल कर दिया क्या ? ( अथवा-निष्फल कर दिया ); क्योंकि देवताओं के उपकार के लिये (शिव-नेत्र अग्नि ) में अपने शरीरको हवन करने ( जलाने ) वा तुमने तत्काल ही स्वर्गमें बन्म पा लिया। [ अन्य भी व्यक्ति परोपकारके लिये अपना शरीर त्यागकर ( मरकर ) तत्काल स्वर्गमें देवता बन जाता है। तुम एकमात्र देवकार्यसाधनरूप परोपकार के लिये भग्निमें जलकर मरनेपर भी तस्कार देव बन गये हो, अन्यथा तुम जैसे पापी एवं अग्निमें बलकर अकाल मृत्युसे मरनेवाले व्यक्तिको स्वर्गप्राप्ति कदापि उचित नहीं है। 'तारकासुर पीडित देवताओं की स्तुतिसे प्रसन्न होकर ब्रह्माने पार्वतीगभंज शिवपुत्रको सेनापति बनाकर युद्ध करनेसे देवताओंका दुःख दूर होने का उपाय बतलाया। तदनुसार इन्द्र के आदेशसे कामदेव हिमालयपर तपस्या करते हुए शिवजीको उनकी सेवामें लगी हुई पार्वतीपर आकृष्ट करने के लिये गया' किन्तु उक्त देवकार्य सिद्ध होने के पहले ही शिवजीका कोपभाजन बनकर जल गया, यह पौराणिक कथा है। ] // 95 // विरहिणो विमुखस्य विधूदये शमनदिक्पवनः स न दक्षिणः / सुमनसो नमयन्नटनौ धनुस्तव तु बाहुरसौ यदि दक्षिणः // 16 // विरहिण इति / हे शूर ! तपासौ बाहुपदि विषूदये चन्द्रोदये सहायलाभे सती. 17 नै
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy