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________________ 218 नैषधमहाकाव्यम् / पुषं जयति / तथैव सा भीमसुतापि विजयास्त्रं सती जयति / ततस्तस्मात् (हतो.) सकामा, स्वस्य विशिखानिषूनिव, तां भैमी, पश्चतया पासण्याकरमेन, मरणेन च / 'पक्षता पसभावे स्यात् पशता मरणेऽपि च' इति विधः / पोजयितुमैहत / स्वेषुधर्मविनयात्रवेनेव पञ्चस्वेनापि योजयितुमैग्छत् / नियतं सत्यमित्युत्प्रेक्षार्थः / अन्यथा, किमर्थमेनामित्थं पीडयेदिति भावः। उपमानोस्प्रेषयोः सहरः॥३७॥ रतिपति कामदेवका विजयसाधनभूत वाण जिस प्रकार विजेता मर्यात सर्वोत्कृष्ट है, उसी प्रकार भीमनन्दिनी दमयन्ती भी सर्वोत्कृष्ट विजयास्त्र है (यह बात कामदेव समझता है), मत एव वह ( कामदेव ) अपने अन्य बाणों के समान उस ( दमयन्ती) को पवस्व (पांच संख्याओंका माव, पक्षान्तरमें-मृत्यु) से युक्त करना चाहा। [कामदेवके सर्वविजेता बाणपत्रता-पांच संख्या के मावसे युक्त अर्थात संख्या में पांच है, अतः दमयन्तीको मी वह पत्रता (मृत्यु) से युक्त करना अर्थात मारना चाहा // विरह में कामपौड़ाके कारण दमयन्तीको अवस्था मरणासन्न हो रही थी ] // 37 // शशिमयं दहनावमुदित्वरं मनसिजस्य विमृश्य वियोगिनी। झटिति वारुणमश्रमिषादसौ तदुचितं प्रतिशस्त्रमुपाददे // 38 // शशिमयमिति / वियोगिन्यसो भैमी, उदेतीत्युदिस्वरमुद्यत् , 'इनशजिसर्तिभ्यः करप' शशिम शशिरूपं, मनसिजस्य दहनासम् भाग्नेयास्त्रं विमृश्यालोच्य, झटिति द्राक / अश्रुमिषाद्वारुणं वरुणदेवताकं, 'सास्य देवता' इत्याप्रत्ययः। तस्याग्नेयस्योचितं प्रतीकारक्षम, प्रतिशतमुपाददे प्रयुक्तवतीत्यर्थः / चन्द्रतापसहिष्णुर. शरणा केवलमरोहीत्यर्थः / सापहवोस्प्रेक्षा // 38 // . वियोगिनी दमयन्तीने चन्द्ररूप काम-माणको दाहक अस (मग्निबाण) समझकर शीघ्र हो आँसके व्याजसे वारुणाखको धारण कर लिया। [अन्य मी योद्धा संग्राममें शत्रुके द्वारा प्रयुक्त भाग्नेयाखको शान्त करने के लिये वारुणास्त्र (पानी रसाकर मग्नितापको शान्त करनेवाला बत्र) धारण करता है // विरहिणी दमयन्ती चन्द्रमाको देखकर तापा. विक्यसे रोने लगती यो] // 38 // अतनुना नवमम्बुदमाम्बुदं सुतनुरस्त्रमुदस्तमवेक्ष्य सा। उचितमायतनिश्वसितच्छलाच्छ्वसनमखममुञ्चदमुं प्रति / / 36 // अतनुनेति / सा सुतनुभैमी, नवं नूतनम्, अम्बुदं मेघमेव, अतनुना भनङ्गेन, उदस्तम् उरिक्षप्तं, आम्बुदमबुदसम्बनभ्यस्त्रं पर्जन्यास्त्रम् अवेचय आपतनिश्चसि. तच्छलाहीनिवासमिषादमुमाबुदं प्रति, उचितं प्रतीकारक्षम, बसनं श्वसनात्मकमस्त्रं वायम्यास्त्रममुखत् प्रायुक्त / मेघदर्शनात् दीप्तमदनज्वरा दीर्घमुष्णं च निश. श्वासेत्यर्थः / अत्रापि सापहवोत्प्रेक्षा // 39 // (विरहिणी) उस दमयन्तीने कामके द्वारा उठाये हुए नबीन मेषरूप वारणास्त्रको देख.
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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