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________________ नैषधमहाकाव्यम् चतुर्थः सर्गः अथ नलस्य गुणं गुणमात्मभूः सुरभि तस्य यश कुसुमं धनुः / श्रुतिपथोपगतं सुमनस्तया तमिषुमाशु विधाय जगाय साम् // 1 // अथ राज्ञः स्वयंवर प्रत्युपोद्धातत्वेनास्मिन्सर्गे भैम्या मदनावस्था वर्णयितुमार. भते-अथेत्यादि / अथ भैम्या प्रियसन्देशश्रवणानन्तरं, आरमभूः कामः, नलस्य गुण आरमोत्कर्षहेतुशौर्यसौन्दर्यादिको धर्मः, तमेव गुणं मौर्यो, विधाय / सुरमि सुगन्धि, मनोज्ञन / 'सुगन्धौ च मनोज्ञे च वाच्यवन सुरभिः स्मृतः' इति विश्वः / तस्य नल. स्य, यद्यशः, तदेव कुसुमं धनुर्विधाय / तथा सुमनस्तया सुमनस्कत्वेन पुष्पत्वेन , श्रुतिपयोपगतं कर्णपथं गतं, पुनः पुनः भैम्या श्रुतमित्यर्थः / माफर्णमाकृष्टस, तं नल मेव, इपुं विधाय / तां भैमी जिगाय / तदेकासकचित्तो चकारेस्पर्थः / 'सन्लिटोजेः' इति कुस्वम् / रूपकालकारः। अस्मिन्सर्गे द्रुतविलम्बितं वृत्तम् / 'द्रुतविलम्बित. माह नभौ मरौ' इति लक्षणात् // 1 // शारदाके चरण कमलों में विनत प्रणिपातकर / राष्ट्रभाषामें लिखू नैषधचरित अनुवाद वर / पूज्य विबुधोंका सदा ही यह मनोरक्षक बने / सरलतासे छात्रगणका भी यही बोधक बने / कामदेवने कान तक पहुंचे ( पक्षान्तर में-खंचे ) हुए, नलके गुणको धनुषकी डोरी, विख्यात ( पक्षान्तरमें-मुगन्धित ) यशोरूपी फूलको धनुष और मन स्विता ( पक्षान्तरमेंपुष्पता ) होनेसे नलको वाण बनाकर उसे ( दमयन्तीको ) शीघ्र ही जीत लिया। [धनुर्धारी योदा भी कानतक प्रस्यनाको खींचकर बाणप्रहारदारा अपने प्रतिपक्षीको चौत लेता है। नकको वाण बनाकर कामदेवने दमयन्तीके हृदय में प्रहार किया, वह नकरूप बाण दमयन्ती के हश्यमें पहुंचकर बहुत पीड़ा देने लगा अर्थात् दमयन्ती नलके गुणोंको सुनकर अत्यन्त कामपीडित हो गयो ] // 1 // यदतनुज्वरभाक्तनुते स्म सा प्रियकथासरसीरसमजनम् / सपदि तस्य चिरान्तरतापिनी परिणतिर्विषमा समपद्यत // 2 // यदिति / सा भैमी, अतनुज्वरमनमज्वरम्, अधिकज्वरश, भजतीति तनाका सती / मजो ण्विः / प्रियकथैव सरसी सरः तस्यां रसो रागः, जलन तत्र मजनमा. सक्किमवगाह, तनुते स्म चकारेति यत् / 'लट् स्मे' इति भूते लट / तस्य मज्जा नस्य, सपदि चिरं दीर्घकालं, अन्तरमभ्यन्तरं, तापयतीति तापिनी, विषमा 14 नै०
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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