________________ द्वितीयः सर्गः। 106 हुए पर्वत को देखा / [ करिशावकोंको शुभसूचक होनेसे मेघरूप करि-शावकोंका दर्शन होना तथा तेंदुए ( चीते ) एवं सर्पोका देखना यात्रामें अशुभसूचक होनेसे उनको शाखाओंसे ढके रहनेका वर्णन किया गया है ] // 67 // स ययौ धुतपक्षतिःक्षणं क्षणमूर्ध्वायनदुर्विभावनः / विततीकृतनिश्चलच्छदः क्षणमालोककदत्तकौतुकः // 6 // स इति / स हंसः क्षणं धुतपक्षतिः कम्पितपक्षमूलः क्षणम् ऊर्ध्वायनेन ऊर्ध्वगमनेन दुर्विभावनो दुष्करावधारणो दुर्लक्ष इत्यर्थः। विततीकृती विस्तारीकृतौ निश्चलौ छदौ पक्षौ यस्य सः, तथा क्षणमालोककानां द्रष्टणां दत्तकौतुकः सन् ययौ / स्वभावोक्तिः // 68 // (अब पांच श्लोकों ( 2 / 68-72 ) से राजहंसके शीघ्रगमनका वर्णन करते हैं-) क्षणमात्र पङ्खोंको कम्पित किया हुआ, क्षणमात्र ऊर्ध्वगमन करनेसे दुर्लक्ष्य ( कठिनाइसे दृष्टिगोचर ) होता हुआ, क्षणमात्र पढोंको फैलानेसे निश्चल (स्थिर ) किया हुआ और क्षणमात्र देखनेवालोंको कुतूहलयुक्त किया हुआ वह (राजहंस ) चला // 68 // तनुदीधितिधारया रयाद्तया लोकविलोकनामसौ। छदहेम कषन्निवालसत् कषपाषाणनिभे नभस्तले // 6 // तन्विति / असौ हंसो रयाद्धेतोः उत्पन्नयेति शेषः। लोकस्य आलोकिजनस्य परीक्षकजनस्य च विलोकनां दर्शनं गतया कौतुकाद्वर्णपरीक्षां च विलोक्यमानयेत्यर्थः। तनोः शरीरस्य तन्वा सूचमया च दीधितिधारया रश्मिरेखया निमित्तेन कषपाषाणनिभे निकषोपलसन्निभे नभस्तले छदहेम निजपक्षसुवर्ण कषन् घर्षन्निवालसत् अशोभतेत्युत्प्रेक्षा // 69 // ___ लोगोंको दिखलायी पड़नेवाली वेगसे शरीर-कान्तिकी रेखासे ( या पतली कान्तिरेखासे ( कसौटीके पत्थरके समान आकाशमें पलके सुवर्णको कसता हुआ ( खरा, या खोटा सुवर्ण है, यह जाननेके लिए आकाशरूप कसौटीके पत्थर पर सुवर्णमय अपने पलों को रगड़ता हुआ ) सा शोभमान हुआ // 69 // विनमद्भिरधः स्थितैः खगै टिति श्येननिपातशङ्किभिः / न निरैक्षि दृशैकयोपरि स्यदसांकारिपतत्रिपद्धतिः // 70 // विनमद्भिरिति / स्यदेन वेगेन सांकारिणी सामिति शब्दं कुर्वाणा पतत्रिपद्धतिः पक्षसरणिर्यस्य स हंसः श्येननिपातं शङ्कत इति तच्छतिभिः अतएव विनमद्भिविलीयमानैरधास्थितैः खगैः झटिति द्राक एकया दृशा उपरि निरैक्षि निरीक्षितः / कर्मणि लुङ् / स्वभावोक्तिः // 70 // ___ अतिशय वेगके कारण झङ्कारयुक्त पडोंवाले उस (राजहंस ) को 'बाज' नामक पक्षीके झपटनेकी आशङ्का करनेवाले ( अत एव ) नीचे झुकते हुए ( उस हंसकी अपेक्षा ) नीचे