________________ 108 नैषधमहाकाव्यम् / इसके बाद दमयन्तीके दर्शनोंसे उसी दिनको सफल करनेके लिए वह पक्षी ( राजहंस ) भूमण्डलके भूषणतुल्य कुण्डिन नगर 'कुण्डिनपुरी' को गया // 64 // प्रथमं पथि लोचनातिथिं पथिकप्रार्थितासिद्धिशंसिनम् / कलसं जलसंभृतः पुरः कलहंसः कलयाम्बभूव सः / / 65 / / अथ श्लोकत्रयेण शुभनिमित्तान्याह-प्रथममित्यादिना / सः कलहंसः प्रथममादौ पथि मार्गे लोचनातिथिं दृष्टिप्रियं पथिकानां प्रस्थातृणां प्रार्थितस्य इष्टार्थस्य सिद्धिशंसिनं सिद्धिसूचकं जलसम्भृतं जलपूर्ण कलसं पूर्णकुम्भं पुरोऽग्रे कलयांबभूव ददर्श // 65 // ___ अब हंसकी यात्रामें होने वाले शुभ शकुनोंको तीन श्लोकों ( 2065-67 ) से वर्णन करते हैं-) उस राजहंसने पहले पथिकसे अभिलषित सिद्धिको सूचित करनेवाले जलपूर्ण कलसको देखा // 65 // अवलम्ब्य दिदृक्षयाऽम्बरे क्षणमाश्चर्य्यरसालसं गतम् | स विलासवनेऽवनीभृतः फलमैक्षिष्ट रसालसंगतम् / / 66 / / अवलम्ब्येति / स हंसो दिनया स्वगन्तव्यमार्गालोकनेच्छया अम्बरे क्षणमाश्चयरसेन तद्वस्तुदर्शननिमित्तेन अद्भुतरसेन अलसं मन्दं गतं गतिमवलम्ब्य अवनीभुजो नलस्य विलासवने विहारवने रसालेन चूतवृक्षण सङ्गतं सम्बद्धम्, 'आम्रश्चूतो रसालोऽसा' वित्यमरः, फलमैक्षिष्ट दृष्टवान् // 66 // ___उस ( राजहंस ) ने थोड़े समयतक मार्गको देखनेकी इच्छासे आकाशमें ( रमणीय देखनेसे उत्पन्न) आश्चर्यसे मन्दगमनका अवलम्बनकर राजा ( नल ) के क्रीडावनमें सामने आमके पेड़में लगे हुए फलको देखा [ मार्ग देखनेके लिए जब हंसने ऊपर देखा तब रमणीय क्रीडावनके देखनेसे अपनी चाल (गति ) को मन्दकर आमके पेड़में फलको देखा ] // 66 // नभसः कलभैरुपासितं जलदै रितरक्षुपन्नगम् / स ददर्श पतङ्गपुङ्गवो विटपच्छन्नतरक्षुपन्नगम् / / 67 / / नभस इति / पुमान् गौः वृषभः विशेषणसमासः, 'गोरतद्धितलुगि ति समासान्तष्टच् स इव पतङ्गपुङ्गवः पक्षिश्रेष्ठः उपमितसमासः, नभसः कलभैः खेचरकरिकल्पैरित्यर्थः / जलदैरुपासितं व्याप्तं भूरयः बहवस्तरक्षवो मृगादनापन्नगा यस्य तं विटपैः शाखाविस्तारैण, 'विस्तारो विटपोऽस्त्रियामि'च्यमरः छिन्नतराः अतिशयेन छादिताः सुपा ह्रस्वशाखाः, 'हस्वशाखाशिफः तुप' इत्यमरः। नगं पर्वतं ददर्श 'पूर्णकुम्भादिदर्शनं पान्थक्षेमकरमिति निमित्तज्ञाः // 67 // ___ पक्षिराज उस ( राजहंस ) ने आकाशके करिशावक (हाथीके बच्चे ) रूप मेघोंसे युक्त बहुत-से झाड़ियों वाले तथा शाखाओंसे छिपे ( ढके ) हुए तेंदुओं तथा सोको छिपाये