________________ को सोरठ देश के अधिष्ठायक यक्ष पद पर नियुक्त किया। अनुक्रम में विचरण करते हुए समेत शिखर पहुंचे। बीच में अनेक स्थानों पर जिनमंदिर, जिनबिम्ब की स्थापना की। उन्होंने अपने शासनकाल में अनेकविध तीर्थों की स्थापना की और पुराने तीर्थों का जीर्णोद्धार करवाया। इस तरह प्रथम जीर्णोद्धार चक्रवर्ती भरतजी का है। वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवजी के एक पुत्र का नाम द्रवणजी था। उनके द्राविड और वारिषेल(ण) दो पुत्र थे। दोनों राज्य के लिए परस्पर क्लेश कर रहे थे। चातुर्मास के समय ही भीषण युद्ध हुआ। परस्पर दोनों भाइयों ने एक-दूसरे के सैन्य का विनाश किया और दस करोड़ मनुष्यों का क्षय हुआ। नजदीक में तापसों के आश्रम थे। दोनों भाई द्राविड और वारिषेल(ण) तापस वृंद के वंदनार्थ गये। वहां उन्होंने मुनियों से धर्मोपदेश सुना। उनका हृदय परिवर्तन हुआ। श्रावक के व्रत अंगीकार किये। तापसों से सिद्धाचलजी का माहात्म्य सुना। दोनों मुनियों के साथ सिद्धाचलजी पहुंचे। मार्ग में तालाब किनारे हंसों का झुण्ड देखा। उनमें एक वयोवृद्ध हंस था। अन्य हंस मनुष्य के पैरों की आहट से ही स्वरक्षार्थ दूर हो गये, मगर वृद्ध हंस चलने-उड़ने में अशक्त था। मुनि ने अपनी करुणा से उस वृद्ध हंस की सेवा की। उसे पानी पिलाया और अपने साथ सिद्धाचल ले गये। वहां उसे अनशनपूर्वक अंतिम आराधना करवाई, जिससे उसने आठवें देवलोक में स्थान प्राप्त किया। अवधिज्ञान से सिद्धाचलजी का ऋण-उपकार पहचाना। उसने वहां एक जिनमंदिर का निर्माण किया और वह तीर्थ हंसावतार नाम से प्रसिद्ध हुआ। दोनों भाइयों ने भी चारणमुनि से चारित्र ग्रहण किया। आमरणांत अनशन व्रत अंगीकार करके दस करोड़ मुनियों के साथ उन्होंने भी परम-पद मोक्ष प्राप्त किया। श्री सिद्धाचल, विमलाचल को बारंबार प्रणाम। प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेवजी को भक्ति-भाव पूर्वक वंदन। Transliteration //O// SriRsabhadevaji namo namah // SriSaradaya namah // SriPundarika-ganadharaya namah // SriVimalacala-tirtha namah // SriVimalacala-tirtha nem visem atita-kalem ananta ananta je bhavyajiva, te atha karma ksaya kari, niravarna ratna-trai je kevala-jnana, kevala-darsana, ksayaka samakitah, bija pana aneka-guna pragata karinem, sriSiddhadri-parvata pharasinem sriSiddha-pada ananta jive pamya сhem, pame chem ane vali pamasyem, avyabadha susa pratem pina havanam to varttamamna covisi mam sriRsabhadeva-svamiim upagara janinem bhavya-jivo nem/ sriSiddhacalaji no olasana karavyum chem. SriRsabhadeva-svammih asarana sarana, bhava-bhaya-harana, bhavya-jivo nem tarava pota-samamna chem, ajnana-rupi tamara talava nem arthe arka-samamna, bhava-rupa-atavih para utarvanem sartha-samamnah, karma-roga talava ne Dhanantara-vaidya-samamna, kasaya-ruagnih talava nem puskaravarta-megha-samamna, prathavi pavana karava bhavya-jiva-rupa-kamala-vikasvara karata, bhavya jivo nem dharma-vani prakasa karata // grame eka rayam, nagare pamca rayamh vihara karata corasi ganadhara, corasi hajara mumniraja, samatha caturvidha-samgha parivara-sahita sri Vimalacala-parvatem samosarya. tivare cya(ra) nikaya na devatah, cosatthi indra sarva bhela mali, srisabhadeva-svamiim dharma-desana nem visem sri Vimalacala-parvata num mahatama-svarupem prarupum. te sriSiddhacalaji num mahatama te ghana jiva bhavem sambhaline paramananda pammata, paramesvaraji num bahu-mamna karata, pota ni atama ni karya-siddhi num svarupa puchata, ghana asamkhya-jiva paramesvaraji na musa-kamali ni vani sabhali je "tumaram atma ni karya nipatti sriSiddhacala tirtha uparem chem", te vamni sambhalinem ananta bhavya-jiva sarira upare thi murccha utarinem samsara thi vimusa thai, cyara (arhara =) ahara chadih, anasana kari, sakala karma-ksaya kari, ajara-mara Susa nem varata hava // 1// vali Sri e Sidhacala-parvata nem visem atita kalem sriKevalajnani-Ni(r)vani- pramusa covisa ariha paramesvara pragata kahem // 2/1 10 पटदर्शन