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________________ भूमिका वृहत्रयी काव्यों में किरातार्जुनीय, शिशुपालवध एवं नैषधीयचरित माने जाते हैं। इनके निर्माता क्रमशः भारवि, माघ एवं श्रीहर्ष हैं। इन काव्यों में उत्तरोत्तर उत्कर्ष पाया जाता है / जैसी कि लोकोक्ति है 'भारवेरवे ति यावमाघस्य नोदयः / उदिते नैषधे काव्ये क्व माघः क्व च भारविः // इसके अनुसार नैषधीयचरित में लोकोत्तर चमत्कारजनक कल्पनासौष्ठव रस, भाव, ध्वनि एवं अलङ्कारों का सर्वत्र सनिवेश है। प्रस्तुत सर्ग में दमयन्ती के स्वयम्बर का वर्णन किया गया है। इसमें तीनों लोक के शस्त्र एवं शास्त्रों के विद्वान् उपस्थित हैं जैसा कि कवि ने भगवान् विष्णु के मुख से कहलाया है __"जगत्त्रयीपण्डितमण्डितैषा सभा न भूता न च भाविनी वा"। उसके वर्णन के लिये स्वयं सरस्वती को भेजा है। इस स्वयम्वर सभा में आये सभी राजकुमार काम के समान हैं। इसको कवि किस मनोहर ढंग से उत्प्रेक्षालङ्कार में वर्णन करते हैं . "एकाकिभावेन पुरा पुरारियः पञ्चतां पञ्चशरं निनाय / तद्भीसमाधानममुष्य कायनिकायलीलाः किममी युवानः" / पुनः उन्हीं युवकों का भूतलरत्न के रूप में किस प्रकार दृष्टान्तालङ्कार में वर्णन करते हैं देखें "मुधापितं मूर्धसु रत्नमेतयंत्राम तानि स्वयमेत एव / स्वतः प्रकाशे परमार्थबोधे बोधान्तरं न स्फुरणार्थमर्थ्यम्" / / सरस्वती का सर्वाङ्ग शास्त्रों के रूप में वर्णन किया गया है देखें "स्थितवकण्ठे परिणम्य हारलता बभूवोदिततारवृता / ज्योतिर्मयी यद्भजनाय विद्या मध्येऽङ्गमङ्केन भृता विशङ्के" // दमयन्ती को अप्सराओं से भी अधिक सुन्दरी कवि किस प्रकार बताते हैं"रम्भादिलोभात् कृतकर्मभिर्भूशून्येव मा भूसुरभूमिपान्थः / इत्येतयाऽलोपिदिवोऽपि पुंसां वैमत्यमत्यप्सरसा रसायाम् // इत्यादि / रम्भा आदि के लोभ से स्वर्ग के पथिकों से कहीं धरा सूनी न हो जाय इसलिये दमयन्ती को रच कर ब्रह्मा ने देवलोकों को भी भूमि पर आकृष्ट कर दिया।
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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