________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् "तावद्भा भारवे ति यावन्माघस्य नोदयः / उदिते नैषधे भानी क्व माघः ? क्व च भारविः ? // " अर्थात् भारविकी कान्ति माघके उदयके पहले ही शोभित होती है परन्तु नैषधरूपी सूर्यके उदय होनेपर कहाँ माघ ? और कहाँ भारवि? इस उक्तिसे नैषधमहाकाव्यकी पूर्वोक्त दोनों काव्योंसे श्रेष्ठता जानी जाती है। नैषधीयचरित महाकाव्यके कर्ता महाकवि श्रीहर्षके पिताका नाम श्रीहीर और माताका नाम मामल्लदेवी वा अल्लदेवी था, यह बात उक्त काव्यके प्रत्येक सर्गके अन्तमें स्थित "श्रीहर्षः कविराजराजिमुकुटाऽलङ्कारहीरः सुतं / श्रीहीरः सुषुवे जितेन्द्रयचयं मामल्लदेवी च यम् // " इस पद्यसे मानी जाती है। किसी उदयनाचार्य नामके पण्डितसे श्रीहर्षके पिता श्रीहीर शास्त्रार्थमें हार गये थे / ये उदयनाचार्य कुसुमाञ्जलि और किरणावलीके कर्ता दशमशताब्दीके मैथिल दार्शनिक उदयनाचार्यसे भिन्न थे / अन्तिम समयमें श्रीहीरने अपने पुत्र श्रीहर्षसे उक्त पण्डितको शास्त्रार्थमें जीतनेका अनुरोध किया था। श्रीहर्पने अपनी मातासे चिन्तामणि मन्त्रकी दीक्षा लेकर भगवतीकी उपासनाके फलस्वरूप असाधारण विद्वत्ता और प्रतिभाकी प्राप्ति होनेसे खण्डन-खण्डखाद्य नामक वेदान्त ग्रन्थसे उदयनाचार्यको परास्त किया। असामान्य वैदुष्यपूर्ण प्रतिभाके कारण जब इसकी रचना दुरूह ई तब अपनी कृतिको बोधगम्य करानेके लिए उन्होंने आधीरातके समय शिरमें पानी डालकर दही पिया तब कफकी प्रचुरतासे कुछ बुद्धिकी मन्दता हुई तदनन्तर इनका काव्य समझनेमें लोग समर्थ हुए ऐसी अनुश्रुति है / - ऐसी भी उक्ति है कि महाकवि श्रीहर्ष प्रसिद्ध आलङ्कारिक मम्मटभट्टके भाजे थे और उन्होंने अपनी रचना नैषधचरित मामाको दिखलाया मम्मटने कहा कि "मुझे काव्यप्रकाशके सप्तम उल्लास लिखनेके पहले ही यह ग्रन्थ मिल जाता तो दोषोंके उदाहरण ढूँढने में अनेक ग्रन्थोंको देखनेका परिश्रम नहीं उठाना पड़ता, तुम्हारे एक ही ग्रन्थ से सब काम चल जाता" परन्तु इस लोकोक्तिमें सत्यताका बहुत कम अंश देखा आता है / महाकवि श्रीहर्ष कान्यकुब्ज (कन्नौज) और वाराणसीके महाराज विजयचन्द्र और जयचन्द्र के सभापण्डित थे और वे कान्यकुब्जेश्वरसे पानके दो बीड़े और आसन पाते थे, तथा समाधिमें ब्रह्मका