________________ षषीयचरितं महाकाव्यम् भाव-शृङ्गारनाम्नो विपुल: समुद्रो रसस्य नूनं क्वचन स्थितोऽस्ति / यस्मादियं श्री रुदगात् समुद्रात् सौन्दर्यचातुर्यनिधानभूता // अनुवाद-शृङ्गार इस नाम से प्रसिद्ध रस का महान् सागर कहीं पार अवश्य होगा जिससे यह दमयन्ती रूपिणी सौन्दर्य एवं चातुर्य की निधानभूत लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ है अन्यथा लक्ष्मी से अधिक गुणशालिनी इसकी उत्पत्ति क्षीरसागर से सम्भावित नहीं है // 115 // साक्षात् सुधांशुमुखमेव भैम्या दिवः स्फुटं लाक्षणिकः शशाङ्कः / एतद्भवो मुख्यमनङ्गचापं पुष्पं. पुनस्तद्गुणमात्रवृत्त्या // 196 // अन्वयः-भैम्या मुखम् एव साक्षात् सुधांशुः दिवः शशाङ्कस्तु लाक्षणिक एतद् भुवी मुख्यम् अनङ्गचापम् पुष्यन्तु तद्गुणमात्रवृत्त्या / व्याल्या-भैम्याः = दमयन्त्याः, मुखम् = आननमेव साक्षात् = उपमानभूतः अभिधाबोध्यः सुधांशुः = चन्द्रः, अधरसुधांधारतया साक्षादनुभूयमानत्वात् / दिवः= आकाशस्य शशाङ्कस्तु लाक्षणिकः = एतन्मुखसदृशगुणसम्बन्धात् गौणीलक्षणा बोध्या / लाक्षणिक:-लाञ्छनयुक्तः / एतद्धृवी% दमयन्त्या ध्रुवी मुख्यम् अनङ्गचापम् = मुखभवतयानुगतार्थम् अभिधाबोध्यम्, पुष्पं तु=दमयन्तीभ्रूगुणसम्बन्धाद् गोणम् लक्षणाबोध्यम्। टिप्पणी-साक्षात् सुधांशु अधर सुधाधारत्वादह्लादकत्वाभिषेयः / शशाङ्क:शशलक्षणयुक्तत्वात् मुखगुणसम्बन्धाद' लक्षणावृत्तिबोध्या / एतस्या ध्रुवी एतद्धृवी (ष० तत्पु०) मुख्यमनङ्गचापम् = मुखभवत्वात् मुखे भवे मुख्यम् "शरीरावयवाद्यत्" इति यत् प्रत्ययः / अभिधावृत्ति बोध्यम् पुष्पन्तु उद्दीपकत्व साम्याद गोणम् / भावा-अदसीय मुखं प्रधान चन्द: गगनस्थस्तगुणेन गौण एव। . . - मदनस्य तु मुख्यचापमेतद् दमयन्ती प्रयुगं न पुष्परूपम् // अनुवाद:-दमयन्ती का मुख ही साक्षात् (मुख्य ) अभिषेय सुधाधु है क्योंकि इसके अधरोष्ठ में सुधा विराजित है। आकाश का शासुतो शशरूप लक्षण से युक्त होने के कारण लाक्षणिक लक्षणावृत्तिबोध्य है इसकी दोनों भोह ही काम के मुख्य चाप हैं मुख में होने के कारण तथा साक्षात् कामोद्दीपक होने कारण अभिषेय हैं। पुष्पता तो समानता के कारण गौण कामदेव का पाप है // 116 //