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________________ तुलनात्मक धर्मविचार. 87 का अस्तित्व उसी दुनियां में होने से समाज और उस के देवताओं के बीच की प्रतिज्ञा इस जीवन के लिए ही था ऐसा माना जाता / याहूदिओं जैसी छोटी समाजने अपनी समाज के राजकीय और धार्मिक अस्तित्व के लिए ही भारी प्रयत्न करने की आवश्यकता होने से स्वाभाविक रीति से अपनी समाज को कायम रखने के व्यवहारिक कार्य में ही उनकी सब शक्तिओं का खर्च होता और इस से भावी जीवन के ऊहापोह में उनका उपयोग नहीं किया गया था। प्राचीन पारसी जो व्यवहार दक्ष तथा विजय शाली भी थे और विजय प्राप्त करने से यह भावी जीवन और परलोक का विचार करने का अवसर मिला था / उनके विचारों का झुकाव उनके संयोगों के अनुकूल हुआ / जब पारसिओं के बीच के संबंध चारों तरफ से जुड़े हुए थे और जब वह सर्वत्र विजयी थे तभी भावी जीवन के विचार उनके मनमें उत्पन्न हुए। परस्पर अन्दर मिले हुए इस समाज के दुनिया के जीवन युद्ध में विजय प्राप्त की थी उनकी दृष्टि से यह युद्ध अहुरमज़द के पूजकों के पवित्र समुदाय दुष्ट तत्व के (अहिर्मान) अनुयाहओं अर्थात् दुनिया की दूसरी सब प्रजाओं के साथ किया था इस परसे परलोक में भी हमारी समाज अहिर्मान के अनुयाइओं पर विजय पाएंगे ऐसा वह मानते / प्राचीन पारसियों की तरह आधुनिक मुसलमान भी ऐसा मानते हैं कि अपने धर्म के मनुष्यों के लिए ही स्वर्ग बना
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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