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________________ पितृपूजा. यह वस्तुएं यद्यपि उस की शब के साथ विधि पूर्वक न दबाई जाएं तो अगले पिछलों को हैरान करने के लिए वह लौटे ऐसे विश्वास से मृत की सामग्री में बढ़ती होती गई / मृत को प्रसन्न रखने, उस का सद्भाव संपादन करने तथा उसके द्रोह मिटाने के लिए अधिक अधिक वस्तुएं साथ दबाई जाने लगी / इनको बलिदान कहते / एथन्स में यह प्रवृत्ति इतनी अधिक बढ़ गई कि पिछले मनुष्य की पूंजी में से अमुक ही रकम अमुक कार्य में खरचने की हद बनाने के लिए सोलन को नियम बनाने की ज़रूरत पड़ी / चीन में यह प्रवृत्ति भयंकर प्रमाण से बढ़ी परन्तु एक युक्ति से इस को रोका गया / मृत मनुष्य के साथ दबाने अथवा जलाने में जो अन्न कीमती वस्त्र गुलाम और उप पलिएं आतीं उनके बदले में कागज़ के गुलाम और उप पलिएं, द्रव्य के बदले सोने अथवा चांदी के कागज़ और अन्न वस्त्र के बदले मिट्टी घास अथवा कागज़ की वैसी आकृतिएं जलाई जाने लगीं। इस प्रकार पितरों को देने वाले बलियों का पुनरुद्धार होने लगा / यद्यपि उसका स्वरूप जैसे के तैसा ही है तो भी वह दिखावट मात्र हो गया। दूसरी ओर देवताओं को देने वाली बलिएं कृत्रिम नहीं परन्तु वास्तविक ही हैं। ऐसा भेद रहने का कारण यह है कि चीनी देवताओं से पूरा ठीक लाभ लेने की आशा रखते हैं / यदि पितर वास्तव में लाभ दे सकते ते उन्हों भी बलि चढ़ाई जातीं / अपने लाभ होने की आशा से
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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