________________ तुलनात्मक धर्भ विचार. संसार के मतों में परिवार समाज आदि संबंध कई उपयोगी कर्मों का वर्णन उत्तमता से मिलता है परंतु वेद में कोई भी सांसारिक व्यवहार ऐसा नहीं जिसका बोध उत्तमता से न कराया गया हो / यज्ञ भी वेद के कर्म काण्ड के अंदर है। इस शब्द के समझने में जगत् में बहुत प्रान्ति फैल रही है / संस्कृतज्ञ पंडित मानते हैं कि संस्कृत शब्दों का अनूठापन एक मात्र यह है कि इसके शब्द धातुओं से बने हुए और सदैव अर्थ बोधक रहते हैं। स्वयं संस्कृत यह शब्द भी दर्शा रहा है कि जो भाषा * भली प्रकार से की गई ' वही इसका अर्थ है / इसी लिए संस्कृतके कोषों में हमको पहले यज्ञ शब्द के धात्विक अर्थ पर विचार करना होगा और यह कभी नहीं हो सकता कि जो अर्थ पीछे इस को दिया गया हो वह कभी भी इस के मूल अर्थ का विरोधी हो सके / सर्व कोषों में यज्ञ भावे के अर्थ में दिया गया है / इस में हिंसा आदि किसी भी दुष्ट कर्म की गन्ध तक नहीं अतः यह बात बलपूर्वक कही जा सकती है कि प्राचीन समय में यज्ञ शब्द हिंसा रहित कर्मों के लिए उपयुक्त होता था / हम इसी बात की पुष्टि में यह भी कथन करना चाहते हैं कि संस्कृत शब्दों के दो भाग महर्षि पाणिनी ने किए हैं एक वैदिक दूसरे लौकिक / वैदिक शब्द वह हैं जो चारों वेदों में आए हैं, इन वैदिक शब्दों संबंधी एक और शब्द शास्त्री महर्षि यास्काचार्य निरुक्तकार दर्शाते हैं कि वेदों के सब शब्द यौगिक हैं अर्थात् अर्थ बोधक हैं।