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________________ तुलनात्मक धर्मविचार राजकीय समाज के रूप में ही रहना चाहिए ' ऐसी सर्वमान्य भावनाको इन दो धर्मों ने स्वीकार नहीं किया होने से उसका विशेष प्रचार हुआ है और राजकीय समाज पर अपने अस्तित्व का आधार नहीं रखने वाले धर्म ही मनुष्य जाति के सामान्य धर्म हो सकते हैं इस सत्यको उन्हों ने अपने दृष्टान्त से ही सिद्ध किया है। बुद्ध धर्म समाजका धर्म है कि व्यक्ति का है इसका निर्णय उसके वाह्य स्वरूप से नहीं हो सकता इसी तरह इसमें ईश्वर नहीं मानने से उस. धर्म को एक धर्म के रूप में गिनवाया नहीं, इसमें भी मतभेद रहता है। परन्तु वास्तविक दशाके देखने से इसका निर्णय हो सकता है। बुद्ध धर्म व्यक्तियों के लिए ही उत्पन्न हुआ है और व्यक्तियों में ही फैला है इस लिए सामाजिक धर्मों में इसकी गणना नहीं हो सकती और इसी कारण के लिए बौद्ध समाज को राजकीय समाज के रूप में माना नहीं जाता। मात्र बौद्ध धर्म पालनेवाले माता पिता से जन्मे हुए मनुष्य को बौद्ध धर्म में प्रवेश नहीं करते परन्तु उसमें प्रवेश करने के लिए जिस समय से वह बुद्ध के उपदेश को मानने का संकल्प करता है और ऐसा करके वह बुद्ध धर्म का आश्रय लेता है उसी समय से उसे बौद्ध गिना जाने लगता है। ऐसी दशा होने से हम को पता लगता है कि बौद्ध धर्म में बुद्ध
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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