SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुलनात्मक धर्म विचार. रूप लेते हैं। इस प्रकार समाज और देवताओं के साथ अच्छा संबंध पुनः स्थिर हो जाता है, यह बताने के लिए भोजन समारंभ किए जाते हैं और उस के परिणाम में देवता के साथ प्रसाद लेना यह भी एक भारी धर्म कार्य विधि है ऐसा माना गया है। इसी स्वरूप में जपानी और याहूदी अपने वहां भी भोजन समारंभों को मानते हैं। परन्तु ऐसा निर्णय सब देवों के संबंध में हो सकता नहीं कारण कि दुनिया के बहुत से ऐतिहासिक धर्मों में कई देवताओं को रखा हुआ नैवेद्य का प्रसाद लिया नहीं जा सकता ऐसा हमे प्रतीत होता है। आफत लानेवाले देवताओं को विसर्जन होने के लिए, लोभ देने के लिए प्राचीन रचित यज्ञ विधेि स्थिर होनी चाहिए। आफत डालने वाले देवताओं तथा यमपुरी के उग्र देवों को ही दिए जाने वाले बलिदान सर्वत्र समाज के उपयोग में लाए जाते न थे यह बात सिद्ध होती है। प्राचीन समय में जब जब समाजपर आफतें आ पड़ती तब तब उन आफतों को दूर करनेके लिए यज्ञ किए जाते थे। वैसे ही आफतें दूर होनेपर देवताओंका उपकार मानने के लिए भी उन उन देवताओंके यज्ञ पुनः किए जाते थे इस लिए इन यज्ञों को हम अनियमित यज्ञ कहेंगे। इसके उपरांत दूसरे कई
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy