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________________ तुलनात्मक धावेचार. परन्तु इस धर्म के अनुयायी मूर्तिमान् ईश्वर बहादेगांधीमक तत्व को ही ईश्वर मान कर संतुष्ट नहीं हुए और मिथै और, अनाहित का धर्म में अंतर्भाव होने से अहुरमझद बर्निमाण स्वरूप की कल्पना की गई है और ऐसा करने से जरथुस्त्र के गूढ तत्व अनेक देववाद रूपी निचली ज़मीन पर पड़ गए। ___ अब तक हमने इस जीवन में मनुष्यों का उनके देवों के प्रति कैसा संबंध है उसका विचार किया, कारण कि लिखित इतिहास रखने वाले दुनियां के बहुत से धर्मों में आरंभ में तथा पीछे भी इस मर्यादा का पालन किया गया है। 'कबर में मनुष्य तेरी स्तुति करते नहीं ' ऐसा दृढ़ विश्वास केवल यहूदियों में ही देखने में आता है ऐसा नहीं परन्तु गुप्त प्रयोगों के आरंभ होने के पूर्व ग्रीक तथा रोमन लोगों में, हमेशा बैबिलोनिया में, असीरिया के लोगों में तथा अभी तक चीनीओं तथा हिंदु धर्म के कई संप्रदायों में ऐसा विश्वास पाया जाता है। मृत मनुष्य यह संसार छोड़ कर चले जाते हैं, और जीवित मनुष्यों को, उनको भूत प्रेतादि के स्वरूप में पुनः आने से रोकना पड़ता है / चाहे किसी कारण से मृत मनुष्य की दशा अथवा स्थिति के संबंध में विचार नहीं किया जाता / ब्राह्मण तथा बुद्ध धम्मों में दृष्टिगत पुनर्जन्म का विश्वास भी हम को इस दुनिया के पार नहीं लगाता, कारण कि उनके मतानुसार पुनर्जन्म पाने वाला जीवात्मा इस दुनिया में पुनः जीवन धारण करता है।
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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