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________________ तुलनात्मक धर्मविचार. 151 कर दिया है। पूजा करनेवालों का समुदाय ईश्वर के साथ व्यवहार कर सकता है और प्रत्येक मनुष्य ईश्वर का उपासक हो सकता है / यज्ञ क्रिया से नहीं परन्तु मात्र पूजा से ही जिस ईश्वर के साथ कोई मनुष्य व्यक्ति अपना संबंध जोड़ सकता है ऐसा ईश्वर अमुक जाति का कि अमुक प्रजा का ईश्वर नहीं परन्तु सारी दुनियां का ईश्वर है। ___सर्वत्र दृष्टिगत मनुष्यों के ईश्वर के साथ के संबंध को धर्म कहते हैं और भिन्न भिन्न धर्मों में इस संबंध को भिन्न भिन्न स्वरूप दिया गया है / सब धर्मों में इस संबंध के ही भिन्न भिन्न स्वरूप हैं ऐसा हम कह सकते हैं। जहां समाज का ही उस के देवता के साथ संबंध है ऐसा माना गया है वहां समस्त समाज ही यज्ञसे अपने देव की पूजा कर सकता है और उस समाज के मनुष्यों को स्वतंत्र पूजा करने का अधिकार नहीं होता अर्थात् वहां मनुष्यों का व्यक्ति स्वातंत्र्य स्वीकार नहीं किया जाता / जहां बहुत कर के निजू यज्ञ किए जाते हैं अथवा जहां जादु का प्रयोग प्रचलित रहने देते हैं वहां इस संबंध पर बहुत ही गहरा असर होता है और देवताओं को एक मनुष्य व्यक्ति की इष्ट सिद्धि के मात्र साधनरूप ही माना जाता है २सा होने से व्यक्तित्व की कल्पना में स्वार्थ का समावेश होता है और इतने ही पर नहीं रुककर व्यक्तित्वकी कल्पना में और व्यक्ति की प्रवृत्ति मे स्वार्थ की प्रधानता हो जाती है / तथापि
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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