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________________ 149 पूजा अथवा उपासना मानसिक ही हो सकती है और निराश ऐसा जिस धर्म में प्रगट किया गया है उस धर्म में पशु इत्यादि की बलि को धार्मिक क्रिया के रूप में नहीं माना जाता। इस विश्वास के अनुसार ईसाई धर्म की यज्ञों द्वारा अपने ईश्वर की पूजा करने वाले समाज की भावना में परिवर्तन तथा विस्तार हुआ है। जहां तक यज्ञ और उपासना को भिन्न नहीं मानकर एक माना जाता था तब तक यज्ञ में भाग लेने वाला समाज की व्यक्तियों को ही उपासक गिना जाता तथा समाज वृद्धि होती तब अपने ही देवका यज्ञ करनेवाला दूसरी तरह के उपासको में भी समावेश किया जाता। यह बात हमको धार्मिक इतिहास पर से प्रगट होती है / अर्थात् पशु यज्ञों में भागलेने वालों का ही उपासक श्रेणी में प्रवेश हो सकता था / ऐसे प्रतिबंध के लिये ऐसे धर्म का सर्वत्र प्रचार नहीं हो सकता था परन्तु जब ईसाई धर्म ने यज्ञ और पूजा अथवा उपासना का भेद प्रगट किया तब पूजा करने वाले अथवा ' उपासक ' इन शब्दों के अर्थ में भी परिवर्तन हुआ और उसका संकुचित अर्थ हट कर वह शब्द विस्तृत अर्थ में प्रयुक्त हुआ / पूजा का अर्थ आध्यात्मिक संबंध है और बद्ध और मुक्त स्वधर्मी तथा परधर्मी कोई भी प्रभु के साथ अपना संबंध जोड़ सकता है ऐसी पूजा की भावना ने उस शब्द के अर्थ में ऊपर बताए अनुसार परिवर्तन तथा विस्तार किया /
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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