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________________ तुलनात्मक धर्मविचार. 131 धार्मिक विकास क्रममें तथा शारीरिक घटनाओं के विकासक्रम में कितने अवयव नष्ट होते हैं और कितने टिके रहते हैं। इस नियमानुसार किसी किसी जगह मिलने वाले बड़े देवताओं के विषय में भी हुआ होगा ऐसा हम कह सकेंगे। प्राचीन काल में एकेश्वरवाद माना जाता था ऐसा अनुमान करने की अपेक्षा इस प्रकार मानना अधिक ठीक है। बीसवीं शताब्दि तक अशिक्षित प्रजाने ऐसे बड़े देवताओं के विश्वास रूप एकेश्वरवाद को किसी अंश में भी प्रचलित रखा है और हिंदु तथा युरोपीय प्रजाओं में तो हज़ारों वर्ष से उसका नाम निशान भी नहीं रहा। ऐसा अनुमान करने में बड़े देवों का कुछ उपयोग नहीं होता ऐसे निर्णय पर हम आएं तो भी याहूदी धर्म के स्वरूप पर कितनी असर होती है इसका विचार करना बाकी रहता है। तुलनात्मक धर्म विचार की दृष्टि से विचार करने पर याहूदियों का धर्म दूसरे धर्मों से बिलकुल अलग हो जाता है और किसी भी विषय में वह धर्म के साथ मिलता नहीं ऐसा हमसे माना ही नहीं जा सकता; वैसे ही वह दूसरे धर्मों जैसा ही है और उसमें कुछ विशेष शिक्षा ग्रहण करने लायक नहीं ऐसा भी मान कर बैठ नहीं सकते / सब वृक्षों के पेड़ शाखा और पत्ते होने पर भी वह एक दूसरे से भिन्न होते हैं, एक जाति दूसरी जाति से मिलती है ऐसा कहने से ही उन दो जातिओं के बीच का स्थिर भेद सिद्ध होता है। किन्हीं भी दो वस्तुओं की तुलना करने से उनकी समता
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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