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________________ 112 बौद्ध धर्म. आयु भोगी थी और जिसने ब्राह्मण धर्म के विरुद्ध बौद्ध धर्म का प्रचार किया था वह भी अपनी प्रवृत्ति से ऊपर जनाए हुए सिद्धान्त का समर्थन करता है। - जब नए धर्म का स्थापित करनेवाला जरथुस्त्र एक धर्मगुरु होता है तब उसे ऐसा प्रतीत होता है कि मैं धर्म में सुधार कर रहा हूं अथवा तो पुराने धर्म का उद्धार करता हूं। जब उस धर्मगुरु के स्थानपर होते हैं तब वह ऐसा मानते है कि मैं समाज को उनके देवों का संदेश कहने वाला हूं' परन्तु बुद्ध अपने कोन पैगम्बर और न ही देवता के रूप में मानता था वैसे ही वह ब्राह्मण धर्म का सुधारकरने अथवा तो उस धन के उद्धार करने के लिए नियुक्त किया हो ऐसा भी नहीं मानता था।ब्राह्मण जाति को अथवा किसी एक जाति को उपदेश करने के लिए उसका जन्म नहीं हुआ था। उसका उपदेश कान से सुन सकने वाले सब के लिए था चाहे वह किसी जाति का हो अथवा तो किसी राजकीय समाज का क्यों न हो। जातिभेद तथा राष्ट्र भेद को उसने माना ही न था इस लिए उसका अपने देश में मान न हुआ इसी लिए उस के बौद्धधर्म को भी अपना कार्य करने लिए अपनी जन्म भूमि का त्याग करना पड़ा / ऐसा होने पर भी वह धर्म कायम रह सका इस पर से इतना प्रतीत हो जाता है कि विश्व व्यापक होने के लिए धर्म में जो जो गुण चाहिएं उनमें से कई गुण बौद्ध धर्म में विद्यमान हैं / चीन तथा जापान में पितृ पूजा अथवा शिन्तो
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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