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________________ तुलनात्मक धर्मविचार. रूप में अथवा राक्षसों की तरह माना गया था। संक्षेप से उनको दुष्ट राक्षसों जैसा गिन कर अलग कर दिया था। धार्मिक विकास की समान दशा में रहे हुए दूसरे लोगों की तरह प्राचीन पारसी भी उनके दुष्ट आक्रमण का भय रखते और ऐसे राक्षसों को वह 'दुख' कहते। धामिक इतिहास में पारसिओं ने जो द्वंद्ववादरूप विशिष्ट अंश को जोड़ा है, उस द्वंद्ववाद की इसी में से उत्पत्ति हुई है। धार्मिक विकास की पूर्वावस्था में बहुतसी बल्कि सब प्रजाओं ने जिनके साथ नियमित संबंध बंधा हुआ है और जिनकी वह पूजा करते हैं-वैसी शक्तिएं और जिनकी पूजा नहीं की जाती पर या जिनकी तरफ से आपत्ति आ पड़ेगी ऐसा माना जाता है-उन शक्तियों के विभाग किए हुए हैं। प्राचीन ईरान में भी इस से विशेष नहीं हुआ था। यद्यपि आरंभ में पारसी धर्म में द्वंद्ववाद के लिए ही ऐसे विभागों से बढ़कर कुछ न था तथापि ज्यूं ज्यूं यह द्वंद्ववाद आगे बढ़ते गए त्यूं त्यूं वह बहुत बढ़ते गए / यह ठीक रीति से समझने के लिए प्रथम हमें, जिन देवों का पारसी समाज पूजा करता था उन पर नहीं परन्तु जिन शक्तियों की तरफ से उन आफतोंका भय रहता उन शक्तियों पर ध्यान देना चाहिए / दुख और देव यह ऐसी शक्तिएं थीं। उनके खास नाम न थे और उनकी संख्या भी बहुत ही थी / जगत् के द्रोह करनेमें तथा सबके अनिष्ट करने में ही वह बराबर प्रवृत्त रहते थे।
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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