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________________ 'पर्याय' की अवधारणा में निहित दार्शनिक मौलिकता एवं विशेषता सुदीप जैन भारतवर्ष दार्शनिक चिन्तन की चिरकाल से अत्यन्त उर्वरा-भूमि रहा है। सामान्यतः कोई भी सकर्ण (कान-सहित) प्राणी 'ध्वनिबोध' करने में समर्थ होता है, किन्तु विचारशक्ति-सम्पन्न होने पर 'शब्दबोध' की सामर्थ्य प्रकट होती है। जब शब्दशास्त्र का अभ्यास होता है या लोकव्यवहार के क्षेत्र में जुड़ते हैं, तब उन शब्दबोधगत शब्दों का 'अर्थबोध' संभव हो पाता है। अर्थबोध में भी शुष्कज्ञान की ही स्थिति रहती है; किन्तु यदि प्रायोगिक अनुभवजन्यता होती है, तो वह 'भावबोध' के स्तर तक पहुंच सकता है / तथा इन सभी को अपने आप में समाहित कर जो व्यक्ति, समाज, देश एवं सम्पूर्ण विश्व को 'दिशाबोध' देने में समर्थ हो जाता है, वही 'दार्शनिक' बन पाता है और ऐसे दार्शनिकों से एवं दार्शनिक चिन्तकों से जहाँ की परम्परा चिरकाल से अतिसमृद्ध एवं सुप्रतिष्ठित रही हो, उस भारतवर्ष के दर्शनों एवं दार्शनिकों में विशिष्ट आयाम एवं वैचारिक गहराई उपलब्ध हो पाना अत्यन्त सहज एवं स्वाभाविक है / ऐसी दर्शन-उर्वर भारत भूमि पर अनेकों दार्शनिक-चिन्तन-धारायें चलीं, किन्तु मुख्यतः कुछ दर्शन ही विशेष प्रतिष्ठा एवं स्थायित्व प्राप्त कर सके हैं / इनमें 'वैदिक' एवं 'अवैदिक' तथा 'आस्तिक' एवं 'नास्तिक' जैसे वर्गभेद भी रहे हैं; किन्तु समग्रतः दार्शनिक चिंतन की पृष्ठभूमि पर हम देखें, तो हम पाते हैं कि अनेकान्तात्मक-चिन्तनपद्धति एवं एकान्त-चिन्तनपद्धति ये दो मूल विभाग भारतीय दर्शनों में उपलब्ध होते हैं / उनमें वेद एवं वैदिक दर्शन एकान्तपद्धति के हैं, क्योंकि वैदिक मनीषियों ने ही लिखा है - "एकान्तदर्शनाः वेदाः"- (महाभारत 12/306/46) यह वर्गीकरण न तो अहेतुक है और न ही अप्रासंगिक; क्योंकि 'पर्याय' की अवधारणा को स्पष्टरूप से समझने के लिए इस दृष्टि को समझना अत्यन्त आवश्यक है / अनेकान्तदृष्टि के भाव में ही अन्य दार्शनिक या तो वस्तु को सर्वथा परिवर्तनशील या परिवर्तनमात्रा वस्तुस्वरूप मानकर 'सर्वं क्षणिकम्', जैसी एकान्त मान्यता का प्रवर्तन कर बैठे, तो कुछ वस्तु को नित्य-निरंश-निरवयव मानकर, समस्त
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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