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________________ जैनदर्शन में बौद्धसम्मत 'पर्याय' की समीक्षा भागचन्द्र जैन पर्याय, द्रव्य का अभिन्न तत्त्व है जो हर दर्शन की मूल भित्ति है / अतः सभी दर्शनों ने तत्त्व या द्रव्य और पर्याय की व्याख्या अपने-अपने ढंग से की है / वस्तु के असाधारण स्वतत्त्व को 'तत्त्व' कहा जाता है (राजवार्तिक, 2.1.6 ) / तत्त्व, परमार्थ, द्रव्य, स्वभाव, परम, परम्परम, ध्येय, शद्ध-ये सभी एकार्थवाची शब्द हैं / जैन-बौद्धदर्शन ने इसके लिए 'सत्' शब्द का भी प्रयोग किया है। पर्याय, द्रव्य में छिपा रहता है / वह द्रव्य की अवस्था विशेष को भेदक या परिणन के रूप में प्रस्तुत करता है। वह द्रव्य का ही अंश या विकास है - 'दव्वविकारो हि पज्जवो भणिदो' / व्यवहार, विकल्प भेद, पर्याय, अंश, भाग, प्रकार, छर्द, भंग आदि शब्द समानार्थक हैं। जैनदर्शन द्रव्य की अनेकान्तिक व्यवस्था में विश्वास करता है / उसकी दृष्टि में प्रत्येक द्रव्य अनन्तधर्मात्मक है। उसमें कुछ धर्म सामान्यात्मक होते हैं और कुछ विशेषात्मक / वह द्रव्य स्वरूपास्तित्व में किसी भी सजातीय या विजातीय द्रव्य से संकीर्ण नहीं होता. उसका पथक अस्तित्व बना रहता है, पर वह अपनी पर्यायों में अनुगत भी रहता है, क्रमिक पर्यायों में द्रवित रहता है, प्राप्त होता है / दूसरा सादृश्यास्तित्व विभिन्न अनेक द्रव्यों में गौ इत्यादि प्रकार का अनुगत प्रत्यय कराता है, जो व्यवहार का कारण बनता है। ___इसी प्रकार विशेष के भी दो प्रकार हैं, तिर्यक् विशेष और ऊर्ध्वता विशेष / यह विशेष दो द्रव्यों में व्यावृत्त प्रत्यय करा देता है। अपनी ही दो पर्यायों में विलक्षणता का प्रत्यय कराने वाला पर्याय नाम को विशेष होता है। इस प्रकार एक द्रव्य की पर्यायों में अनुगत प्रत्यय या समानता ऊर्ध्वतासामान्य से होती है तथा व्यावृत्त प्रत्यय या पृथकता का आभास पर्याय विशेष से होता है। दो विभिन्न द्रव्यों में अनुगत प्रत्यय सादृश्य सामान्य या तिर्यक् सामान्य से होता है और व्यावृत्त प्रत्यय व्यतिरेक विशेष से होता है। इस तरह पदार्थ न केवल द्रव्य रूप है, न केवल पर्याय रूप, बल्कि वह उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप वाला है, सामान्य-विशेषात्मक है। प्रत्येक वस्तु की पर्याय अतीत से सम्बद्ध है और वह भविष्य क्षण को भी उसी वर्तमान पर्याय से प्राप्त करती है। यह परिणमन उसे कूटस्थ नित्य नहीं बनाता बल्कि यह सिद्ध
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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