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________________ 17 पर्यायाधिकार* ब्र० कु० कौशल 1. सहभावी व क्रमभावी पर्याय 1. पर्याय किसे कहते हैं ? द्रव्य के विशेष को पर्याय कहते हैं / 2. पर्याय व विशेष कितने प्रकार के होते हैं ? दो प्रकार के सहभावी व क्रमभावी अथवा तिर्यक् विशेष व ऊर्ध्व विशेष / 3. सहभावी व क्रमभावी विशेष अर्थात् क्या ? सर्व अवस्थाओं में एक साथ रहने से गुण सहभावी विशेष हैं और क्रमपूर्वक आगे पीछे होने से पर्याय क्रमभावी विशेष हैं। 4. तिर्यक् व ऊर्ध्व विशेष अर्थात् क्या ? जिनका काल एक हो पर क्षेत्र भिन्न ऐसे विशेष तिर्यक् विशेष हैं; जैसे द्रव्य की अपेक्षा एक जाति के अनेक द्रव्य, क्षेत्र की अपेक्षा एक द्रव्य के अनेक प्रदेश, भाव की अपेक्षा एक द्रव्य के अनेक गुण / जिनका क्षेत्र एक हो पर काल भिन्न ऐसे विशेष ऊर्ध्व विशेष हैं; जैसे द्रव्य की अपेक्षा एक ही जीव की आगे पीछे होने वाली नर नरकादि व्यञ्जन पर्यायें; और भाव की अपेक्षा एक ही गुण की क्रमवर्ती अर्थपर्यायें / आगम में तो अवस्थाओं को ही पर्याय कहा है ? द्रव्य, गुण व पर्याय तीनों प्रकार के विशेष ही पर्याय शब्द वाच्य हैं, पर रूढि वश केवल अवस्थाओं के लिए ही पर्याय शब्द प्रयुक्त हुआ है /
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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