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________________ जैन दार्शनिक सिद्धान्त को छोड़कर शेष सब द्रव्य स्कन्ध रूप हैं और इसीलिये अस्तिकाय हैं / अस्तिकाय से तात्पर्य उस पदार्थ से है, जिसका अस्तित्व हो और जो 'प्रदेश-युक्त' हो, अर्थात् स्थान घेरता हो / इस दृष्टि से पदार्थों का द्विविध वर्गीकरण हो सकता है - अस्तिकाय और अनस्तिकाय, जैसा कि निम्न तालिका से स्पष्ट है - पदार्थ अनस्तिकाय अस्तिकाय काल जीव अजीव 4 पुद्गल 1. धर्म 2. अधर्म 3. आकाश पुद्गल रूपवान् और इन्द्रियगत है, जबकि धर्म, अधर्म और आकाश रूपरहित हैं / चेतना और भौतिकता की दृष्टि से भी मूलतः पदार्थों का द्विविध वर्गीकरण होता है, जो निम्न तालिका द्वारा व्यक्त है - पदार्थ अचेतन (अजीव) चेतन (जीव) भौतिक (पुद्गल) अभौतिक 1. धर्म 2. अधर्म 3. आकाश 4. काल उपरिलिखित तालिका से यह स्पष्ट हो जाता है कि पदार्थ मात्र चेतन और अचेतन न होकर, अचेतन के अन्तर्गत पुनः भौतिक और अभौतिक रूप होते हैं। समस्त विश्व केवल इन पदार्थों से ही निर्मित है। जीव और अजीव तत्त्व कर्म के माध्यम से परस्पर संयुक्त हो सृष्टि-क्रम का निर्माण करते हैं / यद्यपि तात्त्विक दृष्टि से पदार्थों का द्विविध वर्गीकरण किया गया है, नैतिक दृष्टि से नौ प्रकार के तत्त्वों का भेद किया गया है - (1) जीव (2) अजीव (3) आस्रव (4) पुण्य (5) पाप (6) बन्ध (7) संवर (8) निर्जरा (9) मोक्ष / इन नौ तत्त्वों में जीव और अजीव के पदार्थों को समाविष्ट कर लिया गया है / हम इन नौ तत्त्वों पर क्रमशः विचार करेंगे /
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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