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________________ जैन धर्म में पर्याय की अवधारणा सदृश-विसदृश द्रव्य में सामान्य और विशेष दोनों प्रकार के गुण होते हैं / विशेष गुण के कारण द्रव्य विसदृश होता है। जीव में चैतन्य नामक विशेष गुण है, इसलिए वह परमाणु पुद्गल से विसदृश है / अनेकान्त दर्शन में सदृश और विसदृश सापेक्ष है / विशेष गुण की अपेक्षा विसदृश और सामान्य गुण के अपेक्षा सदृश इसलिए एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से सर्वथा विसदृश नहीं होता / सामान्य गुण की अपेक्षा जीव और परमाणु पुद्गल में वैसदृश्य नहीं खोजा जा सकता / इस सिद्धान्त को व्यावहारिक उदाहरण के द्वारा भी समझा जा सकता है / एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के सदृश नहीं है / 'जीव' की भिन्नता के कारण प्रत्येक मनुष्य, दूसरे मनुष्य से भिन्न है, किन्तु पांच इन्द्रियाँ, मन आदि सामान्य गुणों के कारण एक मनुष्य दूसरे मनुष्यों के तुल्य है। वाच्य-अवाच्य शब्द और अर्थ के पारस्परिक सम्बन्ध का बोध किए बिना व्यवहार का सम्यक् संचालन नहीं होता / अर्थ वाच्य है और शब्द वाचक / हम वाचक के द्वारा वाच्य का ज्ञान करते हैं / वाचक का सम्यक् प्रयोग होता है तो वाच्य का सम्यग् ज्ञान हो जाता है / वाचक का मिथ्या प्रयोग होने पर अर्थ का अवबोध नहीं हो सकता / नय की विचारणा में वाचक के सम्यक् प्रयोग पर सूक्ष्मता से ध्यान दिया गया / अर्थ के अनेक पर्याय हैं / सब पर्यायों को एक साथ नहीं कहा जा सकता / अनन्त पर्यायों को पूरे जीवन में भी नहीं कहा जा सकता / अनन्त पर्यायों का प्रतिपादन करने के लिए अनन्त वाचक चाहिए। हमारा शब्दकोश इस अपेक्षा की पूर्ति के लिए बहुत छोटा है / इस दृष्टिकोण के आधार पर कहा जा सकता है - द्रव्य वाच्य नहीं है / हम द्रव्य के साथ एक पर्याय का कथन करते हैं / एक पर्याय के वचन के आधार पर उसे वाच्य नहीं कहा जा सकता / वचन का व्यवहार विशेष या भेद के आधार पर होता है / अर्थ नय के द्वारा अभेद या सामान्य का अवबोध होता है / अभेद में शब्द प्रधान नहीं होता, अर्थ प्रधान होता है / शब्द नय में अर्थ का बोध शब्द के माध्यम से होता है। उसमें शब्द प्रधान होता है, अर्थ प्रधान नहीं होता / प्रत्यक्ष ज्ञान में वाच्य-वाचक का सम्बन्ध खोजना आवश्यक नहीं है / परोक्ष ज्ञान में वाच्य-वाचक के सम्बन्ध की खोज अनिवार्य है। अर्थ का शब्दाश्रयी ज्ञान चिन्तन और भाषा-दोनों को नया आयाम देता है / शब्दाश्रयी अर्थ ज्ञान का एक दृष्टिकोण है - दीर्घकालिक पर्याय की एक रूप में स्वीकृति, जैसे - अमुक मनुष्य था, है, और होगा। ___कोशकारों ने एक अर्थ का ज्ञान कराने के लिए पर्यायवाची या एकार्थक शब्दों का संकलन किया है / समभिरूढ नय की दृष्टि में यह प्रयत्न निरर्थक है / एक अर्थ या पर्याय का ज्ञान एक शब्द के द्वारा हो सकता है। दूसरा शब्द वाचक नहीं हो सकता / तड़ितवान् और धाराधर-दोनों मेघ के पर्यायवाची शब्द हैं, किन्तु तड़ितवान् शब्द का निर्माण विद्युत के कारण हुआ है और धाराधर शब्द का निर्माण धारा निपात
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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