________________ 328 श्लोकः 346 पू० 347 पू० 348 349 पू० 350 पू० 381 383 351 उसीर 352 354 पू० 354 356 पु. मूला 657 पू० 358 पू० चिणा . .. चतुर्थ परिशिष्टम् / पु० अर्थः टी० अर्थः प्रलोकः पु० अर्थः टी० अर्थः सुवर्चला सूचलि बालतृण भृङ्गराज भांगरउ 379 पू. काशमर्द कासंदउ 380 पू० श्वेतदूर्वा वाथल वथुभा . 380 दूर्वात्रयम् पालक्या पलांक मोथ मोथ डोडी दोडी काकरहूले चाङ्गेरी आंबउत्री 384 ओशीरु आंबउत्री 385 लामज्जकम् लावजउ तन्दुलीयक तंडुलेजा 386 व्रीहि मटातांदुलिजओ . 387 शालिभेदाः शालिविशेष काकमाची कमाइ 388. शूकः यव शितावर ष (? ख)- 388 पू० यव डकूतिर 388 तृ. मसूर 389 खण्डिकश्च . कलायरा मूलक वृहन्मूलक कारेली कारेली उडद पटोल पटोल मुंग कंकोडी ककोडा 392 खण्डी च मुद्गविशेष तुम्बी बिणि 392 पू० मोठ चीभडी 392 सुमनः चीमडीद्वयम् 393 प्र. जीवक जीवक 393 पू० कुलथीविशेष पुष्करमूल पुष्करमूल तूंअरि साथरि जहारि 394 प्र० नीवार बिम्बी गोल्ह, टिडूरी रोहीस 397 स्यात् सण रोहिषद्वयम् गन्धतृण 397 पू० अलसी डाभ 397 तृ. काशद्वयम् भरण्यतिल गांडउ, सेलडी ३९८-क्तिलपेजः श्यामतिल, सेलडी श्वेततिल नलु ३९८-स्तन्तुभः सरसव 399 असुरी शरकड 400 तृ० ऊंबी 4011 कणसडा, प्रधान सिरा गोहूं 364 प्र० 364 पू० 365 कुलथी 368 जुवार 369 370 371 गररी कासु 373 374 पू० 375 पू० 375 नल 377 पू० मुञ्ज