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________________ हैमनिघण्टुशेषटीकान्तर्गताः संस्कृतशब्दयुता लोकभाषाशब्दाः। 321 'महाशालि--महाशालि सुगन्धिक 387 "यव--यव हयप्रिय तीक्ष्याशूक [तायशुक नि०] / नीलयव--तोक्म / मसूर--मङ्गल्यक मसूर / *कलायरा.-कलाय सतीनक 388 / "चिणा--चणक हरिमन्थक। 'उडद-माष मदन नन्दी वृष्य [सरी पु० नि०] बीजवर बलिन् 389 / "मुंग--मुद्ग प्रथन [प्रघन नि०] लोभ्य बलाट [वलाट नि०] हरित हरि / पीतमुद्ग-वसु खण्डीर प्रवेल जय शारद 390 / कृष्णमुद्ग--प्रवर वासन्त हरिमन्थज शिम्बिक / वनमुद्ग--वनमुद्ग तुवरक निगूढक कुलीमक [गुलीमक पु० कुलीनक टि०] 391 खण्डिन् __[खण्डिक पु• नि०] / 'मोठ--राजमुद्ग-राजमुद्ग मकुष्ठक मयुष्ठक / गोहूं--गोधूम सुमन / "वल्ल--वल्ल निष्पाव वेतशिम्बिक [सितशिम्बिक टी. शितशिम्बिक "कुलथी--कुलत्थ [कुलित्य पु.] कालवृन्त / कुलथीविशेष--ताम्रवृन्ता [ताम्रवृन्त नि० ताम्रवृत्ता पु०] कुलत्थिका / "तूंअरि-आढकी तूवरी वर्णा [वर्ष्या पु.] / "कुल्माष--कुल्माष [कुल्मास टी० टि०] यावक 393 / "नीवार-नीवार वनव्रीहि / "श्यामाक--श्यामाक श्यामक / "कङ्गु--कङ्गु कङ्गुनी प्रियङ्गु पीततण्डुला 394 / कृष्णकशु--मधुका / रक्तकगु--शोधिका [शोधिता नि०] / सितकगु--मुसटी [मुशटी नि०] / पीतकगु- माधवी। "कोद्रव--उद्दाल कोद्रव कोरदूषक [कूरदूषक पु०] 395 / 1 डांगर // 2. जव // 3. मसूर // 4. लांग, वातकरवनस्पतिः 'लांग भागे टांग' इति गुर्जरोक्तेः // 5. वणा // 6. अडद. // 7. मग // 8. मठ // 9. घडे // 10. वाल // 11. कळथी। 12. (1) तुवेर (2) तूअर (3) तुवर // 13. (1) अर्धपक्व धान्यना बाकळा (2) भूधरी 14. नमारना चोखा // 15. सामो // 16. कांग // 17. कोदरा // 0
SR No.032753
Book TitleNighantu Shesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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