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________________ ( 78 ) इसलिये यह मेरा निश्चय है कि यदि मेरी भार्या कृशाङ्गी मदालसा मुझे प्राप्त न होगी तो इस जन्म में दूसरी कोई स्त्री मेरी सहचारिणी न हो सकेगी // 16 // उस गन्धर्वतनया मृगनयनी के अतिरिक्त मैं किसी अन्य स्त्री का भोग न करूँगा, यह मैंने सर्वथा सत्य कह दिया // 20 // जीवितं गुणिनः श्लाध्यं जीवन्नेव मृतोऽगुणः // 107|| गुणवान् नितिं पित्रोः शत्रणां हृदयज्वरम् // करोत्यात्महितं कुर्वन् विश्वासं च महाजने // 108 / / देवताः पितरो विप्रा मित्रार्थिविफलादयः / बान्धवाश्च तथेच्छन्ति जीवितं गुणिनश्चिरम् / / 06 // परिवादनिवृत्तानां दुर्गतेषु दयावताम् / गुणिनां सफलं जन्म संश्रितानां विपद्गतैःः // 110 // नागराज अश्वतर राजकुमार से कहते हैं गुणवान् का जीवन श्लाध्य होता है, निर्गुण तो जीता हुआ भी मृतकल्प होता है / // 107 // गुणवान् पुत्र माता-पिता के हृदय में अानन्द और शत्रुओं के हृदय में चिन्ताज्वर पैदा करता है / वह अपने हित का सम्पादन करता हुआ श्रेष्ठजनों के विश्वास का भाजन बनता है // 108 // देवता, पितर, ब्राह्मण, मित्र, याचक, असहाय तथा बन्धु-बान्धव गुणवान् मनुष्य के चिरजीवन की निरन्तर कामना करते हैं // 10 // जिनकी कभी निन्दा नहीं होती, जो दीनों पर दया करते और विपन्नों को आश्रय देते हैं उन गुणवान् मनुष्यों का ही जन्म सफल है // 110 // चौवीसवाँ अध्याय एक दिन नागराज ने राजकुमार से कहा-"राजकुमार ! आप मेरे पुत्रों के सुहृद् हैं, आप से मेरा बड़ा स्नेह है, श्राप को जो भी वस्तु अभिमत हो, चाहे वह कितनी भी बहुमूल्य क्यों न हो, आप निस्संकोच मुझसे मांग सकते हैं / राजकुमार ने कहा-"भगवन् ! अापकी कृपा से मेरे घर सब वस्तुएँ विद्यमान हैं, मेरे पिता के प्रताप से मुझे संसार की सारी वस्तु सुलभ है। मुझे आप से कुछ नहीं चाहिये / हाँ, यदि आप कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे यह वर दें कि मेरे हृदय से धर्म की भावना कभी दूर न हो / नागराज ने कहा-"यह तो ऐसा
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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