________________ ( 76 ) ही होगा, पर मेरा अनुरोध है कि श्राप ऐसी कोई वस्तु मुझसे अवश्य प्राप्त कर . लें जो मनुष्य-लोक में सुलभ न हो / यह सुन राजकुमारने अपने मित्रों की ओर भावभरी दृष्टि से देखा / मित्रों ने उनका अभिप्राय समझ लिया और नागराज से कहा / "पिताजी ! इनकी पत्नी मदालसा इनके निधन का मिथ्या समाचार सुनकर मर गई है और इन्होंने प्रतिज्ञा करली है कि मदालसा को छोड़ किसी अन्य स्त्री को ये अपनी भार्या न बनायेंगे। ये अपनी दिवंगता पत्नी को देखना चाहते हैं, यदि आप इसका उपाय कर सके तो बहुत अच्छा हो"। नागराज ने कहा-“यथार्थ रूप में तो यह असम्भव है, पर उसका मायामय रूप देखा जा सकता है" / राजकुमार ने कहा- "यदि आप मेरी मदालसा को माया के रूप में भी दिखा दें तो मैं बड़ा अनुगृहीत हूँगा'। यह सुन नागराज ने घर में गुप्त रूप से रखी मदालसा को राजकुमार के समक्ष उपस्थित किया और उसके पुनर्जीवन की सारी कथा कह सुनायी / राजकुमार ने मदालसा को पा परमानन्द प्राप्त किया और नागराज को प्रणाम तथा कृतज्ञता निवेदन कर उनकी अनुमति से प्रिया के साथ राजधानी को प्रस्थान किया / इस अध्याय के ये श्लोक संग्राह्य हैं यैर्न चिन्त्यं धनं किश्चिन्मम गेहेऽस्ति नास्ति वा। पितृबाहुतरुच्छायां संश्रिताःसुखिनो हि ते // 10 // ये तु बाल्यात्प्रभृत्येव विना पित्रा कुटुम्बिनः / ते सुखास्वादविभ्रंशान्मन्ये धात्रैव वञ्चिताः॥२२॥ राजकुमार कहते हैं-पिता के वाहुवों की छत्र-छाया में रहकर जिन्हें यह चिन्ता नहीं करनी पड़ती कि उनके घर में धन है अथवा नहीं, वे ही सुखी हैं // 10 // किन्तु जिनको बचपन से ही पितृहीन हो कर कुटुम्बका भार-वहन करना पड़ता है, उनका सुख भोग छिन जाने के कारण, मैं तो समझता हूँ कि विधाता ने ही उन्हें सौभाग्य से वञ्चित कर रखा है // 11 // सुवर्णमणिरत्नादि वाहनं गृहमासनम् | स्त्रियोऽन्नपानं पुत्राश्च चारुमाल्यानुलेपनम् // 20 // एते च विविधाः कामा गीतवाद्यादिकं च यत् / सर्वमेतन्मम मतं फलं पुण्यवनस्पतेः // 21 // तस्मान्नरेण तन्मूलसेके यत्नः कृतात्मना। कर्तव्यः पुण्यसक्तानां न किञ्चिद् भुवि दुर्लभम् // 22 // सुवर्ण, मणि, रत्न आदि बहुमूल्य पदार्थ, वाहन, भवन, आसन, स्त्रियाँ, खान-पान की वस्तुयें, पुत्र, सुन्दर माल्य और लेपन द्रव्य-ये सब तथा गीत