________________ होता, उद्यम से सब कुछ हस्तगत किया जा सकता है। मुझे बताओ तो कि वह कार्य क्या है ? पुत्रों ने कहा-एक दिन गालव नाम के एक श्रेष्ठ ब्राह्मण उत्तम अश्व लेकर हमारे मित्र के पिता राजा शत्रुजित के निकट आये और बोले राजन् ! यह अश्व आकाश से अवतीर्ण हुआ है और आकाशवाणी से यह ज्ञात हुअा है कि अाकाश, पाताल, जल, समस्त दिशावों तथा पहाड़ों में कहीं भी इसकी गति न रुकेगी। यह निरन्तर श्रम करते रहने पर भी कभी न थकेगा। सारे भूमण्डल की अश्रान्त भाव से परिक्रमा कर सकने के कारण यह कुवलय नाम से प्रसिद्ध होगा और आप का पुत्र ऋतध्वज इस पर आरूढ़ हो कर समस्त धर्मविरोधियों का वध करेगा तथा हसके द्वारा महती ख्याति प्राप्त करेगा। अत: यह अश्व ऋतध्वज के लिए आपको भेट करता हूँ, आप कृपा कर अपने पुत्र को इसे दें और धर्म-रक्षा के हेतु मेरे साथ जाने की आज्ञा उसे प्रदान करें। यह सुनकर राजा ने धर्मरक्षा करने के निमित्त हमारे मित्र को उन ब्राह्मण देवता के साथ शुभ मुहूर्त में बिदा किया / इस अध्याय के निम्न श्लोक संग्राह्य हैं-- यस्य मित्रगुणान्मित्राण्यमित्राश्च पराक्रमम् / कथयन्ति सदा सत्सु पुत्रवाँस्तेन वै पिता // 25 // ___ मित्र जिसके मित्रोचित गुणों की और शत्र जिसके पराक्रम की सजनों के बीच सदा प्रशंसा करते हैं उसी पुत्र से पिता पुत्रवान् होता है // 25 // स धन्यो जीवितं तस्य तस्य जन्म सुजन्मनः / यस्यार्थिनो न विमुखा मित्रार्थो न च दुर्बलः // 27 // याचक जिससे विमुख नहीं होते, मित्रों का स्वार्थ जिससे अपूर्ण नहीं रहता, वह मनुष्य धन्य है, उसका जन्म और जीवन धन्य है // 27 // धिक् तस्य जीवितं पुंसो मित्राणामुपकारिणाम् / प्रतिरूपमकुर्वन् यो जीवामीत्यवगच्छति // 27 // मित्रों के उपकार का बदला चुकाये बिना जो अपने को जीवित समझता है, उस मनुष्य के जीवन को धिक्कार है / / 28 / / उपकारं सुहृद्वर्गे योऽपकारं च शत्रुषु / . नृमेघो बर्षति प्राज्ञास्तस्येच्छन्ति सदोन्नतिम् // 30 // जो मनुष्य मेघ के समान मित्रवर्ग में उपकार तथा शत्रवर्ग में अपकार की वर्षा करता है, बुद्धिमान् लोग उसकी सदा उन्नति चाहते हैं / / 26 / / देवत्वममरेशत्वं तत्पूज्यत्वं च मानवाः / प्रयान्ति वाञ्छितं वाऽन्यद् दृढं ये व्यवसायिनः॥३६।।