________________ ( 56 ) रानी राजा से कहती हैं-महाराज ! चिन्ता छोड़ दो, सत्य का पलान करो, सत्य से च्युत मनुष्य श्मशान के समान त्याज्य होता है // 17 // पुरुष के लिये सत्यपालन से बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं है // 18 // जिसका वचन असत्य होता है, उसके अग्निहोत्र, वेदाध्ययन, दान आदि समस्त पुण्य कर्म व्यर्थ हो जाते हैं / / 16 / / धर्मशास्त्रों में बड़ी दृढ़ता से सत्य को उत्थान का और असत्य को पतन का कारण कहा गया है // 20 // सत्येनार्कः प्रतपति सत्ये तिष्ठति मेदिनी / सत्यं चोक्तं परो धर्मः स्वर्गः सत्ये प्रतिष्ठितः॥४१॥ अश्वमेधसहस्रं च सत्यं च तुलया धृतम् / अश्वमेधसहस्राद्धि सत्यमेव विशिष्यते // 42 // सत्य से ही सूर्य तपता है / सत्य पर ही पृथ्वी स्थित है / सत्य ही सब से श्रेष्ठ धर्म है / स्वर्ग भी सत्य पर ही अधिष्ठित है / / 41 / / एक पलड़े पर सहस्र अश्वमेध यज्ञ और दूसरे पलड़े पर एक सत्य को रखकर जब दोनों को तौला जाता है तब सहस्र अश्वमेध की अपेक्षा सत्य ही श्रेष्ठ ठहरता है / / 42 // मच्छोकमग्नमनसः कोशलानगरे जनाः। तिष्ठन्ति तानपोह्याथ कथं यास्याम्यहं दिवम् 1 // 252 / / ब्रह्महत्या गुरोर्घातो गोवधः स्त्रीवधस्तथा / तुल्यमेभिर्महापापं भक्तत्यागेऽप्युदाहृतम् // 253 // भजन्तं भक्तमत्याज्यमदुष्टं त्यजतः सुखम् / नेह नामुत्र पश्यामि तस्माच्छक! दिवं व्रज / / 254 // यदि ते सहिताः स्वर्ग मया यान्ति सुरेश्वर ! ततोऽहमपि यास्यामि नरकं वाऽपि तैः सह // 25 // शक्र ! भुते नृपो राज्यं प्रभावेण कुटुम्बिनाम् / भजते च महायज्ञैः कम पौत करोति च // 257 / / तञ्च तेषां प्रभावेण मया सवेमनुष्ठितम् / उपकन संत्यदये तानहं स्वर्गलिप्सया / / 258 / / तस्माद् यन्मम देवेश! किञ्चिदस्ति सुचेष्टितम् / दत्तमिष्टमथो जप्तं सामान्यं तैस्तदस्तु नः // 256 / / बहुकालोपभोग्यं हि फलं यन्मम कर्मणः / तदस्तु दिनमप्येकं तैः समं त्वत्प्रसादतः // 260 // राजा इन्द्र से कह रहे हैं-अयोध्या में लोग मेरे शोक में मग्न पड़े हैं, उन्हें छोड़कर मैं स्वर्ग कैसे जा सकूँगा // 252 // शास्त्रों में कहा गया है कि भक्त