________________ मार्कण्डेय पुराण का अध्यायानुसार परिचय पहला अध्याय इस अध्याय में महाभारत को सब शास्त्रों से उत्तम बताया गया है और कहा गया है कि इसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-शास्त्र अन्तर्भूत हैं। इसे वेदरूपी पर्वत से निकली हुई वह महानदी कहा गया है जो अपने जलप्रवाह से कुतर्क-वृक्षों का मूलोच्छेद करती हुई बुद्धिमही को निर्मल बनाती है। इसके बाद व्यासशिष्य जैमिनि के महाभारत से सम्बद्ध चार प्रश्नों का उल्लेख है / (2) द्रौपदी पांचो पाण्डवों की पत्नी कैसे हुई 1 (3) तीर्थयात्रा के निमित्त निकले हुये बलराम को ब्रह्महत्या कैसे लगी और उन्होंने उसका क्या प्रायश्चित्त किया ? (4) द्रौपदी के पांचों पुत्र अविवाहित ही क्यों रहे और अनाथ जैसे क्यों मारे गये ? अनेक आवश्यक कार्यभार होने के कारण मार्कण्डेय ऋषि ने स्वयं इन प्रश्नों का उत्तर न देकर तदर्थ जैमिनि को विन्ध्यनिवासी चार पक्षियों के निकट जाने का निर्देश किया। इन पक्षियों के जन्म के वर्णनप्रसङ्ग में ऋषि ने बताया है कि वपु नाम की एक अप्सरा किस प्रकार दुर्वासा के शाप से यक्षिणी हो गई। इस अध्याय का यह श्लोक संग्राह्य है गुणरूपविहीनायाः सिद्धिर्नाट यस्य नास्ति वै / चावधिष्ठानवन्नित्यं नृत्यमन्यद्विडम्बनम् // 36 // जिसमें गुण और रूप नहीं होता उसे नाट्य में सफलता नहीं मिलती। नृत्य का अधिष्ठान सदा सुन्दर होना चाहिए / उसके अभाव में नृत्य एक विडम्बनामात्र होता है। दूसरा अध्याय इस अध्याय में बताया गया है कि कैलास पर्वत पर विद्यद्रप नामक राक्षस ने जब अरिष्टनेमि के पुत्र गरुड़ के वंशज कङ्क को मार डाला तब उसके अनुज कन्धर ने उसका बदला लेने के निमित्त उस राक्षस पर आक्रमण कर उसका वध कर दिया और उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया / कन्धर की इस विजयप्राप्त पत्नी से ही वपु नाम की अप्सरा का यक्षिणी के रूप में जन्म हुआ और