________________ ( 35 ) अपनी श्रद्धा एवं शक्ति के अनुसार सूर्य की आराधना, सूर्य के नमन, पूजन, स्तवन आदि द्वारा उनका प्रसादन करते हैं / नैरुज्य, स्वास्थ्य, शक्तिसंचय, साहस, उत्साह, पराक्रम तथा दीर्घजीवन की प्राप्ति के निमित्त, जप, तप, व्रत, आदि विधियों से उनकी प्रसन्नता का सम्पादन किया जाता है / इस देश के लाखों नर-नारी रविवारको प्रातः काल स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत्त हो अर्घ्य, धूप, दीप, नैवेद्य आदि उपचारों से उनका पूजन करते हैं / व्रत करते हैं / मध्याह्न के समय कोई एक ही वस्तु थोड़ी सी मात्रा में खाते हैं / भोजन में नमक का त्याग करते हैं / दिन में शयन नहीं करते / रात में भोजन एवं जल ग्रहण नहीं करते / सूर्य नमस्कार तो अनेकों का प्रतिदिन का अनिवार्य कर्म है / इससे स्वास्थ्य, शक्ति तथा आरोग्य का लाभ होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि भारतीय जीवन में सूर्योपासना का महान् स्थान है। और यह भी कुछ सीमित शताब्दियों या सहस्राब्दियों से नहीं किन्तु सृष्टि के आदिकाल से है। यही कारण है कि भारत के वेद, पुराण आदि प्राचीन साहित्य में सूर्य की महिमा का विस्तृत एवं विशद विवेचन प्राप्त होता है / इस लेख में मार्कण्डेय पुराण के आधार पर सूर्य के सम्बन्ध में थोड़ी सी चर्चा की जा रही है। उस पुराण के एक सौ एकवें अध्याय में कहा गया है कि___ पहले यह सम्पूर्ण लोक प्रभाहीन तथा प्रकाश से शून्य था। चारो ओर घोर अन्धकार का घेरा पड़ा था। उस समय एक बृहत् अण्ड प्रकट हुअा। वह अण्ड अविनाशी तथा परम कारण-रूप है। उसके भीतर सबके प्रपितामह, समस्त ऐश्वर्य के प्राश्रय, जगत के स्रष्टा एवं स्वामी, कमलयोनि ब्रह्माजी स्वयं विराजमान थे / उन्होंने उस अण्ड का भेदन किया / अण्ड का भेदन होते ही उनके मुख से 'श्रोम' यह महान् शब्द उत्पन्न हुआ। उसके बाद क्रम से भूः, भुवः; स्वः ये तीन व्याहृतियाँ उत्पन्न हुई। ये व्याहृतियाँ सूर्यदेव के स्वरूप हैं / फिर 'श्रोम' शब्द से रवि का परम सूक्ष्म रूप प्रकट हुअा और उसके बाद क्रम से . स्थल, स्थलतर आदि परिमाणों से युक्त मह, जन, तप और सत्य प्रकट हुये / म से लेकर सत्य पर्यन्त ये सातो सूर्यदेव के मूर्तरूप हैं / निष्प्रभेऽस्मिन् निरालोके सर्वतस्तमसावृते / बृहदण्डमभूदेकमक्षरं कारणं परम् // तद्विभेद तदन्तःस्थो भगवान् प्रपितामहः / पद्मयोनिः स्वयं ब्रह्मा यः स्रष्टा जगतां प्रभुः॥ तन्मुखादोमिति महानभूच्छब्दो महामुने! ततो भूस्तु भुवस्तस्मात्ततश्च स्वरनन्तरम् //