________________ ( 2 ) बृहदारण्यक उपनिषद् में वेदों के समान पुराणों को भी भगवान् का निःश्वास कहा गया है _ अरेऽस्य महतो भूतस्य निःश्वसितमेतद् ऋग्वेदो यजुर्वेदः / सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस इतिहासः पुराणं विद्या उपनिषदः // (शा .) ब्रह्माण्ड पुराण में कहा गया है कि चारो वेद, सभी वेदाङ्ग तथा समग्र उपनिषदों का ज्ञान होते हुये भी पुराणों का ज्ञान जिस मनुष्य को नहीं होगा वह विद्वान् नहीं हो सकता यो विद्याधतुरो वेदान् साङ्गोपनिषदो द्विजः। न चेपुराणं संविद्याश्चैव स स्याद् विचक्षणः // (अ० ) पुराणों के भेद पुराणों के मुख्यतया दो भेद हैं-महत्-महापुराण और पुलक-लघु वा उपपुराण एवं लक्षणलच्याणि पुराणानि पुराविदः / मुनयोऽष्टादश प्राहुः शुल्लकानि महान्ति च // (भाग० स्क० 12 अ० 7) ___ महापुराण के प्रतिपाच विषय दश हैं-सर्ग, विसर्ग, वृत्ति, रक्षा, अन्तर, वंश, वंशानुचरित, संस्था, हेतु और अपाश्रय सर्गोऽस्याथ विसर्गश्च वृत्ती रक्षान्तराणि च / वंशो वंशानुचरितं संस्था हेतुरपाश्रयः // (भा० स्क० 12 अ० 7) सर्ग-भौतिक सृष्टि, विसर्ग-चर, अचर रूप चेतनसृष्टि, वृत्तिजीविका, रक्षा-ईश्वर का लोकरक्षार्थ अवतारचरित, अन्तर-मन्वन्तर, वंश-प्रसिद्ध राजपरिवार, वंशानुचरित-प्रसिद्ध राजकुलों का इतिहास, संस्था-प्रलय, हेतु-जीव, अपाश्रय-ब्रह्म / ___ सर्ग आदि का उक अर्थ श्रीमद्भागवत के बारहवें स्कन्ध के सातवें अध्याय में किया गया है अन्याकृतगुणशोभान्महतस्त्रिवृतोऽहमः / भूतमात्रेन्द्रियार्थानां सम्भवः सर्ग उच्यते // 11 // पुरुषानुगृहीतानामेतेषां वासनामयः / विसर्गोऽयं समाहारो बीजाद् बीजं चराचरम् // 12 // वृत्तिर्भूतानि भूतानां चराणामचराणि च /