________________ ( 136 ) राजा करन्धम को सुना दिया / इस समाचार से समूचे राज्य में हर्ष की लहर दौड़ गयी, राज्य भर में सर्वत्र उत्सव मनाये गये, राजा विशाल को भी यह शुभ समाचार सूचित कर दिया गया। एक दिन राजा करन्धम ने अवीक्षित से कहा-"पुत्र ! अब मैं वृद्ध हुआ, तपस्या के हेतु अब मैं जंगल जाना चाहता हुँ। अतः राज्य-शासन का भार अपने हाथ में लेकर मुझे मुक्त करो"। यह सुन राजकुमार ने कहा-- नाहं तात ! करिष्यामि पृथिव्याः परिपालनम् / . नापति ह्रीम मनसो राज्येऽन्यं त्वं नियोजय / / २२,अ०१२८ // ततः कियत्पौरुषं मे, पुरुषः पाल्यते मही / / 23, अ० 128 / / पित्रोपात्तां श्रियं भुङ्क्ते पित्रा कृच्छात् समुद्धतः / विज्ञायते च यः पित्रा, मानवः सोऽस्तुनो कुले ॥२८,अ० 128 / / स्वयमर्जितवित्तानां ख्याति स्वयमुपेयुषाम् / स्वयंनिस्तीर्णकृच्छाणां या गतिः, साऽस्तु मे गतिः॥२६,अ० 128 / / पिता जी ! मैं पृथ्वी का पालन नहीं करूँगा। मेरे मन से लजा नहीं जाती, श्राप राज्य-शासन के लिए दूसरे किसी को नियुक्त करें // 22 // जब राजाओं ने मुझे बन्दी बना लिया था तब आपने मुझे मुक्त किया था, मैं अपने पराक्रम से मुक्त न हो सका था। फिर मुझमें क्या पुरुषत्व है ? पुरुषत्व से युक्त मनुष्य ही का भोग करे, जो पिता द्वारा संकट से उबारा जाय तथा जो पिता के नाम से जाना जाय, कुल में ऐसा मनुष्य न होना चाहिये / / 28 / / जो अपने बलपौरुष से सम्पत्ति और ख्याति का अर्जन करते तथा अपने पौरुष से संकटों को पार करते हैं, मैं उन जैसे लोगों की गति चाहता हूँ। जब अवीक्षित ने अन्तिम रूप से राज्य लेना अस्वीकार कर दिया तब करन्धम ने उसके पुत्र मरुत्त को राज्यासन पर अभिषिक्त किया और स्वयं पत्नी को साथ ले तपस्या करने के निमित्त बन को प्रस्थान किया / / 129 से 131 तक अध्याय पिता की आज्ञा से पितामह का राज्य पाकर मरुत्त औरस पुत्रों के समान प्रजाजनों का धर्मपूर्वक पालन करने लगा। उसने बहुत से यज्ञों का विधिवत् अनुष्ठान किया / उसका राज्य सातो द्वीपों में फैला हुआ था / उस्की गति