________________ ( 126 ) गृहस्थ का जीवन व्यतीत करता हुया वह धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करने लगा। कुछ दिन बाद उसके एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम वत्सप्री रक्खा गया / उसका विवाह राजा विदूरथ की कन्या मुदावती से, जिसका दूसरा नाम सुनन्दा था, हुश्रा / इस विवाह की कथा बड़ी रोचक है यथा इस पृथ्वी पर विदूरथ नाम के एक बड़े प्रतापी एवं यशस्वी राजा थे। उनके सुनीति और सुमति नाम के दो पुत्र तथा मुदावती नाम की एक कन्या थी / एक दिन वे शिकार खेलने जंगल गये / वहाँ उन्होंने एक बड़ा गहरा गर्त देखा / उसे देख वे विस्मित हो रहे थे कि इतने ही में वहाँ सुव्रत नाम के एक तपस्वी आ गये। उनसे राजा ने उस गर्त के बारे में पूछा / तपस्वी ने कहा-"खेद है कि तुम राजा होकर इस बात को नहीं जानते, राजा को तो अपने राज्य के कण-कण की जानकारी रखनी चाहिये / " इतना कह कर तपस्वी ने बताया कि “पाताल में एक कुजम्भ नाम का राक्षस है, उसके पास सुनन्द नाम का एक बड़ा प्रबल मूसल है। उससे बड़े बड़े बलवानों तथा बड़ी-बड़ी सेनाओं का संहार किया जा सकता है। उसका यह स्वभाव है कि जिस दिन उसे कोई स्त्री छ देती है उस दिन वह दुर्बल हो जाता है पर दूसरे दिन वह पुनः पूर्ववत् बलवान् हो जाता है। कुजम्भ को मूसल के इस स्वभाव का ज्ञान नहीं है। वह उसे सर्वथा बलवान् ही समझता है और उसी से अपने शत्रुओं का संहार करता है। उसी मूसल से पृथ्वी को तोड़कर राक्षसों के यातायात के लिये उसने यह गर्त बनाया है।'' राजा ने लौट कर अपनी सन्तानों और मन्त्रियों को उस मूसल तथा उस गर्त की बात बतायी / एक दिन कुजम्भ उस गर्त से आया और राजकन्या को चुरा ले गया। राजा ने राक्षस को मार कर कन्या को ले पाने के निमित्त अपनी सेना तथा अपने पुत्रों को भेजा। कुजम्भ ने तुमुल युद्ध कर सारी सेना का संहार कर दिया और राजाओं को बन्दी बना लिया। तब राजा ने घोषणा करवायी कि जो पुरुष उनकी सन्तानों का उद्धार करेगा उससे वे अपनी कन्या का विवाह कर देंगे। घोषणा सुनकर वत्सप्री राजा के निकट गया और उनकी आज्ञा प्राप्त कर एक बड़ी सेना साथ में ले उसी गर्त के रास्ते कुजम्भ की नगरी में पहुँच कर उसे युद्ध के लिये ललकारा। फिर वत्सप्री और उसकी सेना का कुजम्भ तथा उसकी सेना के साथ विकट युद्ध हुआ / वत्सप्री द्वारा अपनी सेना का तेजी से संहार होता हुआ देखकर वह मूसल लाने के निमित्त दौड़ता हुअा अन्तःपुर में गया किन्तु मुदावती ने मूसल को छूकर पहले ही से दुर्बल कर रखा था। अतः मूसल 6 मा० पु०