________________ आधिदैविक और आधिभौतिक सभी विद्याओं का विशद वर्णन है। लोक जीवन के सभी पक्ष इनमें अच्छे प्रकार प्रतिपादित हैं। संसार में ऐसा कोई ज्ञान, विज्ञान नहीं, मानव मस्तिष्क की ऐसी कोई कल्पना वा योजना नहीं, मनुष्यजीवन का ऐसा कोई अङ्ग नहीं जिसका निरूपण पुराणों में न हुआ हो। जिन विषयों को अन्य माध्यमों से समझने में बहुत कठिनाई होती है वे बड़े रोचक ढङ्ग से सरल भाषा में आख्यान आदि के रूप में इनमें वर्णित हुए हैं / अतः भारत को पूर्ण रूप से समझने के लिये और उसकी अपनी विशेषताओं के साथ विश्व के अन्ताराष्ट्रिय मञ्च पर खड़ा करने के लिये पुराणों का अनुशीलन अनिवार्य रूप से आवश्यक है। पुराणों की इस असाधारण महत्ता और उपादेयता के कारण ही काशीनरेश महाराज श्रीविभूतिनारायण सिंह ने अपनी राजधानी में एक 'पुराण अनुसन्धान संस्थान' की स्थापना और पुराणों के प्रवचन की व्यवस्था की है। पुराणों का आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करना तथा उनके प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित करना इस संस्थान का लक्ष्य है। संस्थान की ओर से 'पुराणम्' नाम की एक पाण्मासिक पत्रिका प्रकाशित होती है जिसमें प्राचीन तथा अर्वाचीन पद्धति के विशिष्ट विद्वानों के महत्त्वपूर्ण लेख छपते हैं। 'मार्कण्डेय पुराणएक अध्ययन' नाम की यह लघु पुस्तक काशीनरेश की ही प्रेरणा से लिखी - गयी है, और उनके सम्मुख इस पुराण के सम्बन्ध में जो मेरे प्रवचन हुये थे उन्हीं पर यह आधारित है। इसमें प्रारम्भ में कतिपय विषयों के विवेचनार्थ कुछ लेख दिये गये हैं, बाद में अध्यायानुसार पूरे पुराण का परिचय दिया गया है और प्रत्येक अध्याय के अन्त में उस अध्याय के शिक्षाप्रद वचनों का संकलन किया गया है। इस पुस्तक का प्रकाशन वाराणसी की उस सुप्रसिद्ध चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस की प्रधान शाखा की ओर से हो रहा है जिसने संस्कृत वालय की अपनी त्याग-प्रधान अनुपम सेवा के बल संस्कृत-प्रेमियों के हृदय में अपना सम्मान पूर्ण स्थायी स्थान बना लिया है। इस पुस्तक से पुराणों के अध्ययन में जनता की रुचि यदि कुछ भी जागृत हो सकी तो प्रेरक, लेखक और प्रकाशक को हार्दिक प्रसन्नता होगी। जन्माष्टमी / वि० सं० 2018 बदरीनाथ शुक्ल