________________ ( 67 ) थीं उसे पुर कहा जाता था। जिसकी लम्बाई चौड़ाई पुर से आधी होती थी वह खेट कहा जाता था। जो पुर के चौथे भाग के बराबर होता था उसे खर्वट कहा जाता था। जिसकी लम्बाई चौड़ाई पुर के आठवें भाग के बराबर होती थी वह द्रोणीमुख कहा जाता था। जहाँ मन्त्री और सामन्त आदि रहते थे तथा भोग्य वस्तुत्रों की बहुलता होती थी उसे शाखानगर कहा जाता था / जहाँ अधिकांश शूद्र रहते थे, खेती के योग्य भूमि होती थी, बाग बगीचे होते. थे, उसे ग्राम कहा जाता था। नगर के बाहर किसी विशेष कार्य के निमित्त लोगों के रहने के लिये जो स्थान बनाया जाता था उसे बस्ती कहा जाता था। जहाँ ऐसे लोग निवास करते थे जिनके पास अपनी निजी खेती नहीं होती थी किन्तु बलप्रयोग तथा लूट-पाट से जीविकार्जन करते थे उसे द्रमी कहाँ जाता था। जहां गोप लोग अपने पशुओं के साथ रहा करते थे और दूध दही बहुलता से प्राप्त होता था उसे घोष कहा जाता था / जब लोग घर बना कर सर्दी-गर्मी से बचाव का प्रबन्ध कर चुके तब लोगों को जीविका की किसी व्यवस्थित प्रणाली के खोज की चिन्ता हुई क्योंकि उन वृक्षों का युग अब बीत चुका था जिनके मधु का पान कर लोग पहले संतृप्त रहा करते थे / त्रेता के प्रारम्भ में एक बड़ी वर्षा हुई, निम्न भूमि में वर्षा का जल एकत्र होने से स्रोत, तालाब, और नदियों का निर्माण हुअा / जल और पृथ्वी के संयोग से अनायास ही चौदह प्रकार के अन्न पैदा हुये / वृक्षों और लताओं में फल, फूल, लगने लगे और इन सब वस्तुवों से लोगों का जीवननिर्वाह होने लगा / फिर अकस्मात् लोगों में ईर्ष्या, द्वेष, लोभ का उदय हुअा। लोग दल बना कर अपनी अपनी शक्ति के अनुसार नदी, खेत, पर्वत, और जंगल पर अपना अपना अधिकार स्थापित करने लगे। धीरे धीरे अन्नों की स्वतः उपज बन्द हो गई, समस्त खाद्य वस्तुओं का अकाल हो गया | खाद्याभाव के कारण सारी प्रजा भूख से व्याकुल हो उठी। फिर ब्रह्मा जी ने प्रजा का कष्ट दूर करने के लिये मेरु पर्वत को वत्स बना पृथ्वीरूप गो का दोहन किवा / उस दोहन से अन्नके बीज प्रकट हुये। फिर वे बीज बोये गये और उनसे अन्न की उपज हुई / कुछ दिन बाद बोये हुये बीजों का प्राकृतिक विकास अवरुद्ध हो गया, तब जोत-पात अादि से पृथ्वी की प्रसवशक्ति के उद्बोधन की प्रथा चली और लोग श्रमद्वारा बीज और धरती से अन्न पैदा करने लगे / इस 7 मा० पु०