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________________ wilmi.iktadiumbustinatantna है / कठोर सर्दी और गर्मी से कष्ट न होना, किसी जीव-जन्तु से भय न होना, ऐसे चिह्नों से योग की सिद्धि की श्रासन्नता का ज्ञान होता है / साधक के प्रति लोगों के मन में अनुराग हो जाना, परोक्ष में उसकी प्रशंसा करना और किसी। प्राणी को उससे भय न होना- इन लक्षणों से योग की सिद्धि की सम्पन्नता का ज्ञान होता है। साधक को योग-प्रवृत्ति के लक्षणों का प्रकाशन तथा योगसिद्धि पर विस्मय नहीं करना चाहिये क्योंकि इससे उसकी शक्ति का ह्रास होता है। चालीसवाँ अध्याय आत्मदर्शन हो जाने पर साधक का सामर्थ्य बढ़ जाता है, विविध प्रकार के योग और अभ्युदय उसे सुलभ मालूम होने लगते हैं / अतः उसे उन भोगों तथा अभ्युदयों की कामना होने लगती है। यह कामना उसके साधना-मार्ग का उपसर्ग है, साधक को इस कामना का यत्नपूर्वक परित्याग कर देना चाहिये / उसके बाद सत्त्व, रज, तम, इन तीनों गुणों से प्रातिभ, श्रावण, दैव, भ्रम और आवर्त नामक पाँच विघ्न उपस्थित होते हैं / “प्रातिभ" प्रतिभा का वह विकास है जिससे समस्त वेद, काव्य, शास्त्र और शिल्पादि विद्याओं का ज्ञान हो जाता है। "श्रावण" श्रोत्र शक्ति का वह विकास है जिससे साधक को सम्पूर्ण शब्द सुनायी पड़ने लगते हैं / "दैव" का अर्थ है देवशक्ति का विकास, जिससे साधक देवता के समान समस्त दिशाओं को देखने लगता है / ध्येय से च्युत हो निरालम्बन होकर मन के भटकने का नाम भ्रम है / बहुमुखी ज्ञान के उद्रेक से चित्त के पूर्वक करना चाहिये / इसके बाद पृथ्वी, जल, तेज, वायु अाकाश, मन और बुद्धि की सात सूक्ष्म धारणायें होती हैं | धारणा का अर्थ है अपने भीतर उन सातों के समावेश की भावना / पृथ्वी आदि पाँच भूतों की धारणा से उन भूतों के सन्निधान की अपेक्षा किये बिना ही उनके गुणों की अनुभूति होने लगती है / मन और बुद्धि की धारणा से अर्थात् संसार के समस्त मन और बुद्धि के अपने भीतर समावेश होने की भावना से साधक के मन-बुद्धि में सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तुओं का मनन और बोध करने की शक्ति का विकास हो जाता है। मोक्षकाम को इन धाराणाओं का भी त्याग करना चाहिये। इसी प्रकार अणिमा, लघिमा, महिमा, प्राति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व और कामावसायित्व, यह अाठ ऐश्वर्य
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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