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________________ ( 83 ) अर्थागमाय क्षितिपाञ्जयेथा यशोऽर्जनायार्थमपि व्ययेथाः। परापवादश्रवणाद् बिभीथा विपत्समुद्राजनमुद्धरेथाः // 38 // यज्ञैरनेकैर्विवुधानजस्रमथैर्द्विजान् प्रीणय संश्रिताँश्च / / स्त्रियश्च कामैरतुलैश्चिराय युद्धैश्वारीस्तोषयितासि वीर ! // 36 // बालो मनो नन्दय बान्धवानां गुरोस्तथाऽऽज्ञाकरणैः कुमारः। स्त्रीणां युवा सत्कुलभूषणानां-वृद्धो वने वत्स ? वनेचराणाम् / / 40 // राज्यं कुर्वन् सुहृदो नन्दयेथाः साधून रक्षस्तात ! यज्ञैर्यजेथाः / दुष्टान्निघ्नन् वैरिणश्चाजिमध्ये गोविप्रार्थे वत्स ! मृत्युं व्रजेथाः // 41 // पुत्र ! तू धन्य है जो शत्रुरहित होकर अकेला ही चिरकाल तक इस पृथ्वी का पालन करेगा / पुत्र ! तू पृथ्वी के पालन से सुख का उपभोग और तन्मूलक धर्म के फलस्वरूप अमरत्व को प्राप्त करना // 35 // पर्यों के दिन भोजन और दक्षिणा से सत्कार कर ब्राह्मणों को तृप्त करना / बन्धु-बान्धवों की इच्छा पूर्ण करना / अपने हृदय में दूसरों के हित का ध्यान रखना, परायी स्त्रियों की ओर कभी मन को न जाने देना // 36 // अपने मन में सदा भगवान् मुरारि का चिन्तन करना / उनके ध्यान से काम-क्रोध आदि छहों शत्रुओं को जीतना / ज्ञान के द्वारा माया का निवारण करना, जगत् की अनित्यताका विचार करते रहना // 37 // धन की आय के लिये राजाओं पर विजय प्राप्त करना, यशके लिये मुक्तहस्त हो धनका सद्व्यय करना। दूसरों की निन्दा सुनने से डरते रहना, विपत्ति के सागर में पड़े हुये लोगों का उद्धार करना // 38 // वीर ! तू यज्ञों से देवताओं को, धन से ब्राह्मणों तथा आश्रितों को सन्तुष्ट करना / कामना की पूर्ति कर स्त्रियों को प्रसन्न रखना / युद्धों में शत्रुओं का मानमर्दन करना // 36 // बाल्यावस्था में बान्धवजनों को आनन्द देना, कुमारावस्था में आज्ञा पालन से गुरुजनों को सन्तुष्ट रखना। युवावस्था में विवाह द्वारा श्रेष्ठकुल की सुन्दरियों को तृप्त करना, वृद्धावस्था में अरण्यवासी हो कर वत्स ! वनवासियों को सुख देना // 40 // पुत्र ! राज्य करते हुये अपने सुहृदों को प्रसन्न रखना, साधु पुरुषों की रक्षा करते हुये यज्ञों द्वारा भगवान् का यजन करना, संग्राम में दुष्ट शत्रुयों का संहार करते हुये गो-ब्राह्मणों की रक्षा के लिये अपने प्राण भी निछावर कर देना / / 41 // सत्ताईसवाँ अध्याय . इस अध्याय में मदालसा ने राजकुमार अलर्क को राजधर्म का उपदेश दिया है। इस उपदेश में धर्मपूर्वक प्रजा का अनुरञ्जन, क्रोध, काम, लोभ,
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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