________________ ( 82 ) "खरतर यति रामलालजी महा० मुक्ता० पृ० 68 पर लिखते हैं कि वि० सं० 1215 में जिनचन्द्रसूरि ने धांधल शाखा के राठोड रामदेव का पुत्र काजल को ऐसा वास चूर्ण दिया कि उसने अपने मकान के देवी मन्दिर के तथा जिनमन्दिर के छाजों पर वह वास चूर्ण डालते ही सब छाजे सोने के हो गये इस लिये वे छाजेड़ कहलाये इत्यादि / " - कसौटी-वासचूर्ण देने वालों में इतनी उदारता न होगी या काजल का हृदय संकीर्ण होगा ? यदि वह वासचूर्ण सब मन्दिर पर डाल देता तो कलिकाल का भरतेश्वर ही बन जाता ? ऐसा चमत्कारी चूर्ण देने वालों की मौजूदगी में मुसलमानों ने सैकड़ों मन्दिर एवं हज़ारों मूर्तियों को तोड़ डाले यह एक आश्चर्य की बात है खैर आगे चल कर राठोड़ो में धांधल शाखा को देखिये जिनचन्द्र सूरी के समय (वि० सं० 1215 ) में विद्यमान थी या खरतरों ने गप्प ही मारी हैं ? राठोड़ों का इतिहास डंका की चोट कहता है कि विक्रम की चौदहवी शताब्दी में राठीड़ राव बासस्थानजी के पुत्र धांधल से राठोड़ों में धांधल शाखा का जन्महुआ तब वि० 1215 में जिनचन्द्रसूरी किसको उपदेश दिया यह गप्प नहीं तो क्या गप्प के बच्चे हैं। ११-बाफना-इनका मूल गौत्र बाप्पनाग है और इसके प्रतिबोधक वीरात 70 वर्षे श्राचार्य रत्नप्रभसूरी हैं नाहाट जांघड़ा बेताला दफ्तरी बालिया पटवा वगेरह बाप्पनाग गौत्र की शाखाए हैं। "खरतर० यति रामलालजी मा० मु० पृ 34 पर लिखते है कि धारानगरी के राजा पृथ्वीधर पँवार की सोलह वीं पिढ़ि पर जवन और सच नामके दो नर हुए वे धारा से निकल जालौर फते कर वहाँ गज करने लगे xx जिनवल्लभ सूरि ने इनको विजययंत्र दिया था जिनदतसृरिने इनको