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________________ हम लोगों को मुठ मूट ही खरतर बनाने को मिथ्या कल्पना कर डाली हैं अतएव खरतरों की सब की सब वंशावलियों कुँवा में डाल कर अपनी संतान को सदा के लिये सुखी बनाइ हो ? खैर कुछ भी हो पर खरतरों की उपरोक्त लिखी हुई बोत्थरों की उत्पति तो बिलकुल कल्पित है इस विषय में “जैन जाति निर्णय " नामक किताब को देखनी चाहिये कि जिस में विस्तार से समालोचना की गई है। वास्तव में राँणो सागर महागणा प्रताप का लघुभाई था और इसका समय विक्रम की सतरहवी शनाब्दी का है और सावंतसिंह देवड़ा विक्रम की अठारहवीं शताब्दी में हुआ है खरतरों ने शिशोदा और देवड़ा को बाप बेटा बना कर यह ढंचा खडा किया है और यह कल्पित ढचा खड़ा करते समय यतियों को यह भान नहीं था कि इसकी समालोचना करने वाला भी कोई मिलेगा। खैर / इस समय खरतरगच्छ की सात पट्टावलियां मेरे पास मौजूद हैं जिसमें किसी भी पट्ठावलि में यह नही लिखा है कि जिनदत्तसूरी ने बोत्थरा जाति बनाई थी। पर उन पट्टावलियों से तो उलटा यही सिद्ध होता है कि दादाजी के पूर्व बोत्थरा जाति विद्यमान थी / जैसे खरतरगच्छीय क्षमा कल्याणजी ने वि० सं० 1830 में खरतरगच्छ पट्टावली लिखी है उसमे लिखा है कि___ 'तथा अणहिल्लपत्तने बोहित्थरा गौत्रीय श्रावकेभ्यो जयति हुण वर कापरुक्ख' इ त स्तोत्र दत्तम् __अर्थात् जिनदत्तसूरि ने अणहिल पट्टन में बोत्थोरा को स्तोत्र दिया इससे यही ज्ञात होता है कि जिनदत्त सूरि के पुर्व पाटण में बोत्थरा विद्यमान थे। अतएव बोत्थरा कोरंटगच्छीय आचार्य
SR No.032743
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 12 Jain Jatiyo ke Gacchho ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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