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________________ ( 78 ) यह भी एक उड़ती गप्प ही है क्यों कि न तो उस समय चित्तोड़ पर राणा रत्नसिंह का राज था और न मालवा में किसी बादशाह का राज ही था वि० सं० 1356 तक मालवा में पँवार राजा जयसिंह का राज था (देखो भारत का प्राचीन राजवंश) इसी प्रकार सागर देवड़ा के साथ गुजरात के बादशाह की कथा घड़ निकाली है गुजरात में वि० सं० 1358 तक बाघला वंश के राजा करण का राज था बाद में बादशाह के अधिकार में गुजरात चलाया गया। (देखो पाटण का इतिहास) इसी भांति सागर देवड़ा के साथ देहली बादशाह का अघटित सम्बन्ध जोड़ दिया है सागर का समय वि० सं० 1170 के आस पास का है तब देहली पर वि० सं० 1249 तक हिन्दू सम्राट् पृथ्वीराज चौहान का राज था फिर समझ में नहीं आता है कि यतिजो ऐसी असम्बन्धिक बातें लिख सभ्य समाज में हाँसी के पात्र क्यों बनते हैं क्या इस वीसवी शताब्दी के बोत्थरा बछावत इतने अज्ञात हैं कि यतिजी के इस प्रकार की गप्पों पर विश्वास कर अपने प्रतिबोधक कोरंटगच्छाचार्यों को भूल कर कृतघ्नी बन जाय ? ___ "खातर लोग कहा करते हैं कि हमारी वंशावलियों की बहियो बीकानेर में कर्मचन्द वच्छावत ने कुँवा में डाल कर नष्ट कर डाली इत्यादि / " शायद् इसका कारण यह ही तो न होगा कि उपरोक्त खर. तरों की लिखी हुई बोथरों की उत्पति कर्मचन्द पढ़ी हो और उनको वे कल्पित गप्पें मालुम हुइ हो तथा वह समझ गया हो कि हमारे प्रतिबोधक आचार्य कोरंटगच्छ के हैं केवल भधिक परिचय के कारण हम खरतरगच्छ को क्रिया करने के लिये ही खरतरों ने
SR No.032743
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 12 Jain Jatiyo ke Gacchho ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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