________________ 175 में जिनदत्तमान महा मुक्का० पृ०४० - ( 71 ) खुर्शीनामा नागोर के गुरो गोपीचन्दजी के पास विद्यमान हैं। मुरा की संतान सुरांणा कहलाई / - "खरतर-यति रामलालजी ने महा० मुक्ता० पृ० 45 पर लिखा है कि वि० सं० 1175 में जिनदत्तसुरिने सुराणा बनाया-मूलगच्छ खरतर-" ___कसौटी-यदि सुरांणां जिनदत्तसूरि प्रतिवोधित होते तो सुरांणागच्छ अलग क्यों होता जो चौरासी गच्छों में एक है उस समय दादाजी का शायद जन्म भी नहीं हुआ होगा अतएव खरतरों का लिखना एक उड़ती हुई गप्प है। 6 झामड़ मावक-वि० सं० 988 आचार्य सर्वदेवसूर ने हथुड़ी के राठोड़ राव जगमालादिको प्रतिबोध कर जैन बनाये इन्हों को उत्पत्ति वंशावली नागपुरिया तपागच्छ वालों के पास विस्तार से मिलती हैं। . ___"खरतर-यति रामलालजी महा० मुक्ता० पृ० 21 पर लिखते हैं कि व० सं० 1575 में खरतराचार्य मद्रसूरि ने झाबुआ के राठोड़ राजा को उपदेश देकर जैन बनाये मूलगच्छ खरतर-” / ___कसोटी-भारत का प्राचीन राजवंश नामक इतिहास पुस्तक के पृष्ठ 363 पर पं० विश्वेश्वरनाथ रेउ ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है किः "यह झाबुआ नगर ईसवी सन् की 16 वीं शताब्दी में लाझाना जाति के झब्बू नायक ने बसाया था परन्तु वि० सं० 1664 (ई० सं० 1607) में वादशाह जहाँगीर ने केसवदासजी (राठोड़) को उक्त प्रदेश का अधिकार देकर राजा की पदवी से भूषित किया।" सभ्य समाज समझ सकता है कि वि० सं० 1664 में