________________ ( 68 ) जिसमें भी स्नात्रीय बने थे उन्हों के गौत्र है पर इनके सिवाय उपकेशपुर में तथा अन्य स्थानों में बसने वाले महाजनों के क्या क्या गोत्र होंगे उनका उल्लेख नहीं मिलता है तथापि सम्भव है कि इतने विशाल संघ में तथा तीन सौ वर्ष जितने लम्बे समय में कई गोत्र हुए ही होंगे / यदि खोज करने पर पता मिलेगा उनको भविष्य में प्रकाशित करवाया जायगा। उपरोक्त गोत्र एवं जातियों के अलावा भी जैनाचार्यों ने राज पूतादि जातियों की शुद्धि कर महाजन संघ (ओसवाल वंश) में शामिल मिला कर उसकी वृद्धि की थी जैसे कि १-आर्य गोत्र- लुनावत शाखा-वि. सं. 684 आचार्य देवगुप्तसूरि ने सिन्ध कारावगौसलभाटी को प्रतिबोध कर जैन वना कर ओसवंश में शामिल किया जिन्हों का खुर्शीनामा और धर्म कृत्य की नामावली जैन जाति महोदय द्वितीयखण्ड में दी जायगी "खरतर गच्छीय यति रामलालजी महाजन वंश मुक्तावली पृष्ट 33 में कल्पित कथा लिंख वि० सं० 198 में तथा यति श्रीपालजी ने वि० सं० 1175 में जिनदत्त सूरि ने आय गोत्र बनाया घसीट मारा है। यह बिलकुल गप्प है। इससे पांच सौ वर्षों के इतिहास का खून होता है। २-भंडारी-वि. सं. 1839 में प्राचार्य यशोभद्र सूरि ने नाडोल के राव लाखण का लघुभाई राव दुद्धको प्रतिबोध कर जैन बनाया / बाद माता श्राशापुरी के भण्डार का काम करने से भंडारी कहलाया जैतारण, सोजत और जोधपुर के भण्डारियों के पास अपना खुर्शीनाम आज भी विद्यमान है / "खरतर० यति रामलालजी ने महा० मुक्त० पृष्ठ 69 पर लिखा है कि वि. सं. 1478 में खरतराचार्य जिनभद्रसूरि ने नाडोल के राव लाखण के