________________ "तलमटो बाप्पनागस्ततः कर्णाट गोत्रजः / तुर्य बलाभ्यो नामाऽपि श्री श्रीमाल पश्चमस्तथा / 166 कुलभद्रो मोरिषश्च, विरिहिद्याह्नयोऽष्टमः श्रीष्टि गौत्राण्यमृन्यासन, पते दक्षिण संज्ञके // 170 मुन्चितिताऽदित्यनागौ, भूरि भाद्रोऽथ चिंचटिं कुमट कन्याकुब्जोऽथ, डिडूभाख्येष्टमोऽपिच / 171 // तथाऽन्यः श्रष्टिगौत्रीय, महावीरस्य वामतः नव तिष्टन्ति गोत्राणि, पञ्चामृत महोत्सवे // 172 (1) तप्तभट (तातेड़) (2) बाप्पनाग (वाफना) (3) कर्णाट (करणावट) (4) वलाह (रांका बांका सेठ) (5) श्रीश्रीमाल , (6) कुलभद्र (सूरवा) (7) मोरख (पोकरणा) (8) विरहट (भूरंट) (9) श्रेष्टि (वैद्य मेहता) एवं नव गोत्र वाले स्नात्रीय प्रभु प्रतिमा के दक्षिण-जीमण तरफ पुजापा का सामान लिये खड़े थे। (1) सूचिति (संचेती) (2) आदित्यनाग (चोरडिया ) (3) भूरि (भटेवरा) (4) भाद्रो (समदड़िया) (5) चिंचट (देसरड़ा) (6) कुमट (7) कन्याकुब्ज (कनोजिया) (8) डिडू (कोचर मेहता) (9) लघु श्रेष्टि (वर्धमाना) एवं नव स्नात्रीय पञ्चामृत लिए महाबीर मूर्ति के वाम-डावे पासें खड़े थे। यह कथन केवल उपकेशपुर के महाजन संघ का ही है - नाहटा, जांघड़ा, वैताला, पटवा, बलिया, दफ्तरी वगैरह। *गुलेछा, पारख, गदइया, सावसुखा, बुचा नाबरिया चौधरी दफ्तरी वगैरह भी आदित्यनाग गौत्र की शाखाए हैं।