________________ 'पाटावलि का सारांश 'वीर निर्वाण संवत् और जैन काल गणना' नामक पुस्तक के पृष्ठ 165 तथा 180 पर लिखा है। सुज्ञ पाठक ! विचार कर सकते हैं कि वि० सं० 202 में श्रोस वंश शिरोमणि पोलाक श्रावक विद्यमान था तब यह वंश वीरात् 70 वर्षे उत्पन्न होने में क्या शंका हो सकती है ? इस हालत में यह कह देना कि ओसवंश रत्नप्रभसूरि ने नहीं बनाया पर खरतराचार्यों ने बनाया यह सिवाय हँसी के और क्या हो सकता है / क्या पूर्वोक्त हाकने वाले ओसवालों के साथ खरतरों का कोई सम्बन्ध होना सावित कर सकता है ? जैसे ओसवालों का अर्थात् ओसियाँ और उपकेश वंश का घनिष्ट सम्बन्ध उपकेशपुर और उपकेशगच्छ के साथ है। 4- यदि खरतरों ने ही ओसवाल बनाये हैं तो खरतर शब्द का जन्म तो विक्रम की बारहवीं "तेरहवों" शताब्दी में हुआ पर श्रोसवाल तो उनके पूर्व भी थे ऐसा पूर्वोक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है / और भी देखिये ! श्राचार्य बप्पभट्टसूरि, विक्रम की नौवों शताब्दी के प्रारम्भ में हुए, उन्होंने ग्वालियर के राजा आम को प्रतिबोध कर विशद ओसवंश में शामिल किया, इसका उल्लेख शिलालेखों में मिलता है, जैसे कि: " एतश्च गोपाल गिरी गरिष्ठः, श्री बप्प भद्दो प्रति बोधितश्च / / श्री श्राम राजोऽजनि तस्य पत्नी, काचित् बभूव व्यवहारि पुत्री / /