________________ ( 56 ) ही हैं। मन्दिर मूर्तियों के शिलालेखों में रांकों को बलाह गौत्र को शाखा बतलाई है / देखिये: __ "सं० 1528 वर्षे वैशाख वद 6 सोम दिने उपकेश ज्ञातौ बलहो गोत्रं रोका मा० गोयंद पु० सालिंग भा० बालहदे पु० दोल्हू नाम्ना भा० ललता दे पुत्रादि युतेन पित्रोः पुण्यार्थ स्व श्रेयसे च श्री नेमिनाथ बिंब का० प्र० उपकेशगच्छीय श्री ककुदाचार्य सं० श्री देवगुप्तसूरिभिः" ___ बाबू० पूर्ण० सं०शि० द्वि० पृष्ठ 129 लेखांक 1571 / "सं० 1576 वैशाख सुद 6 सोमे उपकेश ज्ञातौ बलहि गोत्रे रांका शाखायां सा० एसड़ भा० हापू पुत्र पेथाकेन भा० जीका पुत्र 2 देपा दूधादि परिवार युतेन स्वपुण्यार्थ श्री पद्मप्रभ बिंब कारितं प्रतिष्ठं श्रो उपकेशगच्छे ककुदाचार्य संताने भ० श्री सिद्धसूरिभिः दान्तराई वास्तव्यः" बावू. पर्ण० सं० शि० ले० सं० प्रथम पृष्ठ 19 लेखांक 74 / ___ इन शिलालेखों से स्पष्ट पाया जाता है कि गंका बांका कोई स्वतंत्र गोत्र नहीं है पर बलहा गोत्र की शाखा है और इन शाखाओं के निकलने का समय विक्रम की चौथी शताब्दी का है। उस समय खरतरगच्छ का ही नहीं पर नेमीचन्द सूरि तक का जन्म भी नहीं हुआ था। फिर समझ में नहीं आता