________________ ( 48 ) डालण पुत्र रत्नपालेन स० श्रीवत व. धधुमल युतेन मातृ पितृ श्रे० श्री संभवनाथ वि. का. प्र. उपकेश गच्छे ककुदाचार्य श्रीदेवगुप्त सूरिभिः बोबू पू० सं. शि० प्र० तृष्ठ 117 लेखांक 497 "सं० 1516 वर्षे ज्येष्ट बदि 11 शुक्र उपकेश ज्ञातिय चोरडिया गोत्र उएशगच्छे सा० सोमा भा० धनाई पु० साधु सुहागदे सुत ईसा सहितेन स्वश्रेय से श्री सुमतिनाथ विवि कारितं प्रतिष्टितं श्री कक्व सूरिभिः सोणिरा वास्तव्य" लेखांक 558 पूर्वोक्त शिला लेखों से यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि चोरड़िया स्वतंत्र गोत्र नहीं पर आदित्यनाग गोत्र की एक शाखा है। जब चोरडिया आदित्यनाग गोत्र की शाखा है तब गदइया गोले. च्छा, पारख, सावसुखा, नावरिया, बुचा, तेजांणि चौधरी दफ्तरी आदि 84 शाखाए भी आदित्यनाग गोत्र की शाखाएँ स्वयंसिद्ध हो जाती हैं और आदित्यनाग गोत्र के स्थापक आचार्य रत्नप्रभसूरि ही हैं। जिनको आज 2393 वर्ष हो गुजरे हैं फिर समझ में नहीं आता है कि खरतरा चोरड़ियों को दादाजी प्रतिबोधिक खरतरा कैसे बतला रहे हैं ? विस्तार से देखो “जैन जाति निर्णय" नाम ग्रंथ जो मेरा लिखा है और फलौदी से मिलता है, जिसमें जोधपुर अदालत से इन्साफ होकर चोरडिया जाति उपकेशगच्छ की है ऐसा परवाना भी कर दिया है जिसकी नकल यहाँ दे दी जाती है।. .. .. . . . . . . . . . . . . . . . . . . .